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मधुबाला और दिलीप कुमार का अधूरा प्रेम-गीत

भारतीय सिनेमा के सुनहरे पर्दे पर अनगिनत प्रेम कहानियाँ उभरीं, उनमें से कुछ कल्पना की उड़ान थीं तो कुछ वास्तविक जीवन की मार्मिक गाथाएँ। मगर इन सबमें एक ऐसी प्रेम कहानी भी है जो समय के साथ फीकी पड़ने के बजाय और भी चमकदार होती गई, वह है 'मधुबाला और दिलीप कुमार की प्रेम कहानी।' यह सिर्फ दो सितारों का रिश्ता नहीं था, बल्कि दो असाधारण प्रतिभाओं और दो नितांत विपरीत व्यक्तित्वों के बीच पनपा ऐसा प्रेम था, जो अपने अधूरेपन के कारण आज भी सिनेमाई किंवदंतियों में शुमार है।   चित्र : गूगल से साभार आज के दौर में जब बॉलीवुड के रिश्ते क्षणभंगुर होते दिखते हैं, तब मधुबाला और दिलीप कुमार का नौ साल लंबा प्रेम संबंध, अपनी गहराई और मार्मिकता के कारण और भी विशिष्ट प्रतीत होता है। यह 1951 की बात है, जब फिल्म 'तराना' के सेट पर नियति ने उन्हें करीब ला दिया। उस समय, दिलीप कुमार को 'ट्रेजेडी किंग' के नाम से जाना जाता था। वे अपनी संजीदा अदाकारी, गहन व्यक्तित्व और पर्दे पर उदासी को साकार करने की अनूठी क्षमता के लिए मशहूर थे। उनका शांत स्वभाव और विचारों में डूबी आँखें उन्हें दर्शकों के बीच एक ...

बदलती वैश्विक शक्ति संरचना: बहुध्रुवीयता की ओर

वैश्विक शक्ति संरचना में परिवर्तन एक ऐसी गतिशील और जटिल प्रक्रिया है, जो मानव इतिहास के विभिन्न कालखंडों में सामाजिक, आर्थिक, तकनीकी और राजनीतिक बदलावों के साथ आकार लेती रही है। यह प्रक्रिया न केवल देशों के बीच शक्ति के वितरण को प्रभावित करती है, बल्कि वैश्विक शासन, सहयोग और संघर्ष के तौर-तरीकों को भी पुनर्परिभाषित करती है। बीसवीं सदी में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वैश्विक शक्ति संरचना द्विध्रुवीय थी, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ दो प्रमुख शक्तियों के रूप में उभरे। शीत युद्ध के समापन और 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका एकमात्र महाशक्ति बन गया, जिसने एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था को जन्म दिया। हालांकि, इक्कीसवीं सदी की शुरुआत में वैश्विक शक्ति संरचना में एक नया मोड़ देखने को मिल रहा है, जो अब बहुध्रुवीयता की ओर बढ़ रहा है। इस बदलाव ने वैश्विक मंच पर नए शक्ति केंद्रों को जन्म दिया है, जिनमें उभरते हुए देश जैसे चीन, भारत, ब्राजील और रूस, साथ ही क्षेत्रीय संगठन जैसे यूरोपीय संघ और आसियान शामिल हैं।        वैश्विक शक्ति संरचना का ऐतिहासिक...

यूक्रेन-रूस युद्ध और उसके भू-राजनीतिक निहितार्थ

रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध, जो 2014 में क्रीमिया के रूसी कब्जे और डोनबास में अलगाववादी आंदोलनों के समर्थन के साथ शुरू हुआ और 24 फरवरी, 2022 को रूस के पूर्ण पैमाने पर आक्रमण के साथ चरम पर पहुंचा, आधुनिक विश्व के सबसे जटिल और गंभीर भू-राजनीतिक संकटों में से एक है। यह युद्ध केवल दो पड़ोसी देशों के बीच का क्षेत्रीय विवाद नहीं है, बल्कि इसने वैश्विक शक्ति संतुलन, आर्थिक स्थिरता, ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय कानून, और मानवाधिकारों को गहराई से प्रभावित किया है। इसने शीत युद्ध की याद दिलाई है, जहां विचारधाराओं, सैन्य शक्ति, और आर्थिक हितों का टकराव वैश्विक व्यवस्था को पुनर्परिभाषित कर रहा है। इस लेख में युद्ध के ऐतिहासिक मूल, कारणों, भू-राजनीतिक निहितार्थों, हाल के घटनाक्रमों और भारत जैसे तटस्थ देशों की भूमिका का गहन और तथ्यपरक विश्लेषण प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।   मूल आलेख   ऐतिहासिक संदर्भ रूस और यूक्रेन के संबंधों की जड़ें मध्यकालीन कीव रस (9वीं से 13वीं सदी) तक जाती हैं, जो आधुनिक रूस, यूक्रेन, और बेलारूस की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक नींव थी। कीव, जो अ...

आधुनिक महिला साबित्रीबाई फुले : भारत में नारीवादी आंदोलन की सूत्रधार

माता फुले जयंती पर, 'आधुनिक महिला साबित्रीबाई फुले: भारत में नारीवादी आंदोलन की सूत्रधार' विषय पर हुई परिचर्चा। कार्यक्रम की शुरुआत माता फुले के चित्र के आगे दीप प्रज्वलित एवं पुष्पर्चान करके किया गया। कार्यक्रम में सम्मिलित महिलाएं और बच्चे माता फुले के जयंती केक काटकर मनाए। कार्यक्रम की रूपरेखा डॉ. विजयश्री मल्ल ने प्रस्तुत करते हुए कहा कि माता सावित्री बाई फुले उस समय स्कूल खोली जिस समय का समाज ऐसा सोचता था कि वो अपने घर की औरतों को पढ़ाएगा तो महामारी आ जाएगी, घर में घोर अनर्थ हो जाएगा, पाप लगेगा। इस समय स्कूल खोलना कितना कठिन रहा होगा; इसकी कल्पना आप कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें हजारों लोगों के घर जाकर उनकी बेटियों को पढ़ाने के लिए प्रेरित किया तदुपरान्त 9 लोगो ने अपनी बेटियों को पढ़ने के लिए भेजा। उनकी समझ केवल पढ़ाई तक सीमित न होकर औरतों के ऊपर लगाए गए ढेर सारे रूढ़िवादी परंपराओं का तार्किक विरोध तक भी था, जिससे महिलाओं का जीवन आसान हो सके। इसीलिए उन्हें भारत में नारीवादी आंदोलन की सूत्रधार के रूप याद किया जाता है। वो भारत की पहली आधुनिक महिला थी। डॉ. धर्मेंद्र कुमार मल्ल...

'सामाजिक बदलाव के लिए साहित्य को राजनीतिक रास्ते की ओर भी देखना होगा।' - डॉ. अनिल राय

ग्रामीण पुस्तकालय भलुआ, देवरिया की स्थापना दिवस के उपलक्ष में स्व. विंध्याचल सिंह स्मारक न्यास द्वारा आयोजित  29 दिसम्बर 2024 को 'पूँजीवादी विकास के दौर में लोकतांत्रिक मूल्य और साहित्य' विषय पर परिचर्चा, सम्मान समारोह एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन सम्पन्न हुआ।  कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों को असमिया गमुसा और स्मृति चिन्ह देकर स्वागत करने से हुआ। इसके बाद पहले से तय विषय पर परिचर्चा की शुरुआत हुई। विषय प्रवेश करते हुए देवरिया के वरिष्ठ साहित्यकार उद्भव मिश्र ने पूँजीवाद के इतिहास से परिचित कराते हुए कहा कि शुरुआत में पूँजीवाद ने सामंतवाद से मुक्ति दिलायी पर आज केंद्रित पूँजीवाद सामंती औजार बन गया है,जो नये तरह के सामंती व्यवस्था की ओर बढ़ रहा है। मनुष्य कब पूँजीवाद के गिरफ्त में आ जाता है; पता नहीं चलता है।' जनवादी लेखक संघ गोरखपुर के अध्यक्ष जयप्रकाश मल्ल ने कहा कि 'पूँजीवाद के दौर में आम इंसान से कार्य करने के अवसर छीने जा रहे हैं, पूँजीवाद में विकास तो दिख रहा है लेकिन इसी अनुपात में लोग भुखमरी से मर भी रहे हैं।' जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय महासचिव एवं वरिष्ठ पत्रका...

चौथा अनहद कोलकाता सम्मान डॉ. सुनील कुमार शर्मा को

मनीषा त्रिपाठी फाउंडेशन फिल्म तथा अनहद कोलकाता वेब पत्रिका की ओर से दिया जाने वाला चौथा मनीषा त्रिपाठी स्मृति अनहद कोलकाता सम्मान 2024 हिन्दी भाषा के महत्वपूर्ण कवि-गद्यकार एवं विज्ञान लेखक डॉ. सुनील कुमार शर्मा को प्रदान किया जाएगा। अनहद कोलकाता के प्रबंध निदेशक उमेश त्रिपाठी ने बताया कि यह सम्मान हर वर्ष कला के किसी भी विधा में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले एक कला साधक को दिया जाता है। इसके पूर्व यह सम्मान हिन्दी के महत्त कवि एवं एक्टिविस्ट केशव तिवारी और महिलाओं के सवालों को अपनी कविता में पूरजोर तरीके से उठाने वाली हिन्दी की ही कवि रूपम मिश्र तथा महत्त कवि कथाकार, पत्रकार, फिल्मकार एवं चित्रकार डॉ. अभिज्ञात को दिया जा चुका है। सम्मान स्वरूप सम्मानित कलाकार को ग्यारह हजार रूपए की मानदेय राशि सहित प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है।                    डॉ. सुनील कुमार शर्मा हिन्दी में उस परम्परा के लेखक हैं जिनकी जड़ें विज्ञान और भारतीय परम्परा में धँसी हुई हैं। उन्होंने हिन्दी कविता को न केवल नए शब्द दिए हैं वरन् चैट जीपीटी एवं ...

चित्तौड़गढ़ दुर्ग भ्रमण

यूँ तो राजस्थान किलों के लिए प्रसिद्ध है। राजस्थान के हर बड़े शहर में एक किला (दुर्ग) आपको अवश्य दिख जाएगा। परंतु राजस्थान के चित्तौड़गढ़ का किला अपने आप में बेहद खास है। चित्तौड़गढ़ का किला भारत का सबसे विशाल दुर्ग है। चित्तौड़गढ़ मेवाड़ राज्य की राजधानी थी। किले की चारदीवारी भी अपने आप में बेहद खास है। यहां आने वाले पर्यटकों में राजस्थान के निवासियों के अलावा भारत के अलग-अलग राज्यों के निवासी भी आते हैं। इसके अलावा देश-विदेश के तमाम सैलानी रोजाना हजारों की तादाद में यहाँ आते हैं। यह किला मौर्य राजवंश के सम्राट चित्रांगद मौर्य ( चित्रांग ) ने बनवाया था। यह एक विश्व विरासत स्थल है। मेवाड़ के प्राचीन सिक्कों पर एक तरफ चित्रकूट नाम अंकित मिलता है। इस किले की बहुत प्रशंसा सुनने के बाद मेरा मन भी चित्तौड़गढ़ दुर्ग को देखने के लिए लालायित हो उठा था। बचपन में पुस्तकों में चित्तौड़गढ़ के किले के बारे में एक चित्र देखा था और कुछ कहानियां भी सुनी थी जो राजपूत राजा महाराणा प्रताप के बारे में थी। दरअसल जब मैं सन 2022 में मेवाड़ विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्य करने के लिए आया त...

हद या अनहद कविता संग्रह को मिला जनकवि रामजी लाल चतुर्वेदी सम्मान

छतरपुर। मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन की छतरपुर इकाई द्वारा जनकवि रामजी लाल चतुर्वेदी स्मृति सम्मान 2023, युवा कवि सुनील कुमार शर्मा की कृति हद या अनहद को दिया गया। गांधी आश्रम में आयोजित इस सम्मान समारोह में डॉ सुनील कुमार शर्मा को हिन्दी सम्मेलन की छतरपुर इकाई के सदस्यों द्वारा सम्मान पत्र, शाल श्रीफल और सम्मान राशि के द्वारा अलंकृत किया गया। सम्मान समारोह में जनकवि रामजी लाल चतुर्वेदी पर आधारित पुस्तक "हमारे नन्ना" का लोकार्पण अतिथियों एवम् नन्ना के परिवारजनों के द्वारा किया गया। लोकार्पित ग्रंथ का संपादन डॉ बहादुर सिंह परमार, शिवेंद्र शुक्ला और नीरज खरे द्वारा किया गया है। इस अवसर पर नन्ना का पुण्य स्मरण अतिथियों एवम् उनके संबंधियों द्वारा किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत, महाकवि तुलसीदास, प्रेमचंद, हरिशंकर परसाई, एवम् रामजीलाल चतुर्वेदी के चित्रों पर अतिथियों द्वारा माल्यार्पण एवम् दीप प्रज्वलन के साथ हुई। इकाई के अध्यक्ष नीरज खरे ने समस्त अतिथियों का परिचय कराते हुए उनका पारंपरिक स्वागत कराया। इसके उपरांत कबीर भजन हुआ। इकाई के संयोजक प्रो बहादुर सिंह परमार ने पुरस्कार...

गिरिडीह में याद किए गए अवधी भाषा के प्रगतिशील कवि जुमई खां 'आजाद'

दिनांक 11.08.24 को जन संस्कृति मंच, गिरिडीह और 'परिवर्तन' पत्रिका के साझे प्रयत्न से गिरिडीह कॉलेज, गिरिडीह के न्यू बिल्डिंग में अवधी भाषा के प्रगतिशील कवि जुमई खां 'आजाद' स्मृति संवाद के तहत जुमई खां 'आजाद' की कविताओं का पाठ किया गया तथा उनकी कविताओं पर बतौर मुख्य वक्ता अवधी और हिंदी के युवा कवि-आलोचक डॉ.शैलेंद्र कुमार शुक्ल ने व्याख्यान दिया।  जुमई खां का जन्म 05 अगस्त 1930 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला के गोबरी गांव में हुआ था। वे समाजवादी विचारधारा से ताजिंदगी जुड़े रहे और डॉ.राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण के करीबी थे। समाजवादी आंदोलनों में उनको जेल भी जाना पड़ा था। शैलेंद्र ने बताया कि हिंदी और अवधी कविताओं की कुल इक्कीस किताबें प्रकाशित हैं। उनका आखिरी अवधी कविता संग्रह का नाम 'कथरी' है। शैलेंद्र ने कहा कि अवधी के कवि 'पढ़ीस ' के बाद जुमई खां की कविताओं में सबसे अधिक वर्ग चेतना की सहज अभिव्यक्ति हुई है। वे ऐसे कवि थे जो जीवन भर खेती और कविकर्म से जुड़े रहे।  अपने बीज वक्तव्य में डॉ. बलभद्र ने कहा कि जुमई खां मध्यकाल के कवि तुलसीदास ...

'प्रेमचंद का भारत' विषय पर टी.डी.बी. कॉलेज, रानीगंज में हुआ एकदिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन

प्रेमचंद जी की 144वीं जयंती के अवसर पर दिनांक- 31.07.2024, को त्रिवेणी देवी भालोटिया कॉलेज, रानीगंज हिन्दी विभाग एवं IQAC के संयुक्त तत्वाधान में एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी (प्रेमचंद का भारत) का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत सर्वप्रथम मुंशी प्रेमचंद और कवि गुरू रवीन्द्रनाथ टैगोर जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ हुआ। संगोष्ठी का आरंभ अतिथियों द्वारा द्वीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत में छठे सेमेस्टर की छात्रा खुशी मिश्रा ने 'वर दे वीणा वादिनी' वन्दना का गायन किया। तत्पश्चात बीए (ऑनर्स) प्रथम सेमेस्टर के छात्रों ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आये प्रोफेसर आशुतोष पार्थेश्वर और विशिष्ट वक्ता के रूप में डॉ. साबेरा खातून उपस्थिति रहीं। इस कार्यक्रम में कॉलेज के TIC  प्रोफेसर मोबिनुल इस्लाम, TCS अनूप भट्टाचार्य और IQAC कॉर्डिनेटर डॉ. सर्वानी बनर्जी ने कथाकार प्रेमचंद के संदर्भ में अपने-अपने विचार रखें। इस संगोष्ठी की अध्यक्षता हिंदी विभाग की डॉ. मंजुला शर्मा ने किया। प्रथम सत्र का आरम्भ अपराह्ण 12:30...