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Showing posts from January, 2023

युवाओं के मसीहा : स्वामी विवेकानंद

भारत में न जाने कितने युवा पैदा हुए , लेकिन ऐसा क्या था उस युवा में जिसके जन्मदिन को हम ‘ युवा दिवस ’ के रुप में मनाते हैं। या यूं कहें कि उसने ऐसे कौन से कार्य किए जिससे वह आज भी हम युवाओं के प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। जब कोई व्यक्ति अपने समय की समस्याओं से सीधे टकराकर मानवता के लिए पथ प्रदर्शित करने का कार्य करता है तो वह चिरस्मरणीय बन जाता है। ऐसे समय में जब दुनिया हमें नकारात्मक नजरिए से देख रही थी , हम उसके लिए अशिक्षित-असभ्य थे। तब ‘ उठो जागो और लक्ष्य तक पहुंचे बिना न रुको ’ का नारा देकर भारतीय जनमानस में नवचेतना का संचार करने वाला वहीं युवा था , जिसे आगे चलकर दुनिया ने ‘ स्वामी विवेकानंद ’ के नाम से जाना।             भारतीय धर्म , दर्शन , ज्ञान एवं संस्कृति के स्वर से दुनिया को परिचित कराने वाले युवा ही हम सभी का प्रेरक हो सकता है। अपनी अपार मेधा शक्ति के चलते उसने न केवल ‘ अमेरिकी धर्म संसद ’ में अपनी धर्म-संस्कृति के ज्ञान का डंका बजाकर उसकी श्रेष्ठता को प्रमाणित किया , अपितु विश्व की भारत के प्रति दृष्टि में बदलाव को रेखांकित किया। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो “ स

घुमंतू समुदाय की दुश्वारियां सामने लाता है ‘साँप’ उपन्यास

ज नवादी लेखक संघ (जलेस) समय-समय पर महत्त्वपूर्ण किताबों की समीक्षा-गोष्ठियों का आयोजन करता है ।   अपनी नई सीरीज में जलेस ने ‘नदी पुत्र’ (रमाशंकर सिंह), ‘प्रेमाश्रम’ (प्रेमचंद) के बाद 11दिसंबर, को हरिकिशन सिंह सुरजीत सभागार,नई दिल्ली में रत्नकुमार सांभरिया लिखित ‘साँप’ उपन्यास पर समीक्षा-गोष्ठी का आयोजन किया|  गोष्ठी की अध्यक्षता कवि-आलोचक डॉ. चंचल चौहान ने की । अपने अध्यक्षीय संबोधन में चंचल चौहान ने "सांप" उपन्यास को महत्त्वपूर्ण बताते हुए कहा कि यह घुमंतू समुदाय की कठिन जीवन स्थितियों और संघर्षों को आधार बनाकर लिखा गया है ।  उन्होंने उपन्यास की वस्तु और शैली की प्रशंसा की ।  चंचल जी ने कहा कि जिस घुमंतू समुदाय के पास कोई नहीं जाता उनके बीच रहकर, बारीकी से पर्यवेक्षण करके सांभरिया जी ने यह श्रमसाध्य कार्य किया है । वरिष्ठ कवि एवं आलोचक डॉ. एन. सिंह ने विम ल मित्र और अमृतलाल नागर जैसे समर्थ कथाकारों के हवाले से कहा कि वे बहुत दिनों से किसी ऐसे दलित उपन्यास की तलाश में थे जो ‘खरीदी कौड़ियों के मोल’ तथा ‘बूँद और समुद्र’ जैसा हो ।  एन. सिंह ने कहा कि ‘साँप’ उपन्यास भी अपनी सहज भ