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'सामाजिक बदलाव के लिए साहित्य को राजनीतिक रास्ते की ओर भी देखना होगा।' - डॉ. अनिल राय

ग्रामीण पुस्तकालय भलुआ, देवरिया की स्थापना दिवस के उपलक्ष में स्व. विंध्याचल सिंह स्मारक न्यास द्वारा आयोजित  29 दिसम्बर 2024 को 'पूँजीवादी विकास के दौर में लोकतांत्रिक मूल्य और साहित्य' विषय पर परिचर्चा, सम्मान समारोह एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन सम्पन्न हुआ। 


कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों को असमिया गमुसा और स्मृति चिन्ह देकर स्वागत करने से हुआ। इसके बाद पहले से तय विषय पर परिचर्चा की शुरुआत हुई। विषय प्रवेश करते हुए देवरिया के वरिष्ठ साहित्यकार उद्भव मिश्र ने पूँजीवाद के इतिहास से परिचित कराते हुए कहा कि शुरुआत में पूँजीवाद ने सामंतवाद से मुक्ति दिलायी पर आज केंद्रित पूँजीवाद सामंती औजार बन गया है,जो नये तरह के सामंती व्यवस्था की ओर बढ़ रहा है। मनुष्य कब पूँजीवाद के गिरफ्त में आ जाता है; पता नहीं चलता है।' जनवादी लेखक संघ गोरखपुर के अध्यक्ष जयप्रकाश मल्ल ने कहा कि 'पूँजीवाद के दौर में आम इंसान से कार्य करने के अवसर छीने जा रहे हैं, पूँजीवाद में विकास तो दिख रहा है लेकिन इसी अनुपात में लोग भुखमरी से मर भी रहे हैं।' जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय महासचिव एवं वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार सिंह ने कहा कि 'सूचना के संसाधन एवं जैव प्रौद्योगिकी पर पूँजीवाद का कब्जा उदारवादी लोकतंत्र के लिए खतरा है। पूँजीवाद एक तरफ हमारी मदद करने आया लेकिन ये हमारे लिए ही खतरा बन गया। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), अरबों लोगो के कार्य को खत्म कर देगा। इस दौर में जो इंसान मनुष्य की इन परेशानियों के बारे में लिख रहा है वही सच्चा साहित्यकार है।' 


डॉ. चतुरानन ओझा ने कहा कि 'पूँजीवाद के दौर में लोकतांत्रिक मूल्यों जैसे तथ्यों पर चर्चा अपने आप में बहुत साहसिक कार्य है। पूँजीवाद, सामंतवाद के विरोध के रूप में बराबरी लेकर आया, लेकिन बाद में इसने संसाधनों पर कब्जा करना शुरू किया। यदि उत्पादन और उपभोग सामूहिक है तो उस पर स्वामित्व अकेला किसी व्यक्ति का नहीं होना चाहिए।' ऋषिकेश मिश्र ने कहा कि 'देश समाज में इस तरह की परिचर्चा बहुत ही सराहनीय है, लोकतांत्रिक मूल्यों पर जो खतरा है उनके समाधान भी खोजने जरूरी हैं, हमारी ये जिम्मेदारी है कि समाधान भी खोजें।' डॉ. विजयश्री मल्ल ने कहा कि AI मानव के दिखाई देने वाले कार्यों को ही कॉपी कर सकता है, लेकिन उसके अंदर चेतना नहीं है, वो हमारी भावनाओं को कॉपी नहीं कर सकता है।' मेरठ कॉलेज, मेरठ के सहायक प्रोफेसर डॉ. हितेश कुमार सिंह ने कहा कि 'पूँजीवाद और रूढ़िवाद को मजबूत किया जा रहा है। भारतीय जनमानस अभी लोकतांत्रिक मूल्यों को स्थापित नहीं कर पाया है। सूचना के तंत्रों पर समान हित धारकों का कब्जा हो गया है, इस वजह से इस वक्त अभिभावक एवं अध्यापक के ऊपर संकट आ गया है। इसका उपाय ये है कि लोकतांत्रिक मूल्यों वाले लोगों को सम्मान दीजिए।' गिरीश नारायण शाही ने किसानों की दुर्दशा पर चर्चा की। दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. अनिल राय ने कहा कि 'पूँजीवादी व्यवस्था केवल अर्थतंत्र की व्यवस्था ही नहीं है बल्कि इसने हमारी मानवीय, सांस्कृतिक व्यवस्था को काफी क्षति पहुंचाई है। स्पष्ट राजनीतिक समझदारी न होने की दशा में साहित्य कोई बदलाव नहीं ला सकता है। सांस्कृतिक बदलाव के लिए साहित्य बहुत कोमल रास्ता है, इसलिए बदलाव के लिए राजनीतिक रास्ते की तरफ देखना जरूरी है। परिवर्तन पत्रिका के संपादक और इस कार्यक्रम के आयोजक डॉ. महेश सिंह ने कहा कि 'लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए इतने सारे विचारों के संचार से इस गाँव में जो क्रांतिकारी बयार बहेगी वो निश्चय ही देश और समाज में बदलाव का वाहक बनेगी ।'


अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए वरिष्ठ साहित्यकार एवं ईस्टर्न साइंटिस्ट शोध पत्रिका के मुख्य सम्पादक डॉ. अचल पुलस्तेय ने सभी वक्ताओं की वक्तव्यों की समीक्षा करते हुआ हुए कहा- दुनिया का कोई भी ईजाद या वाद मनुष्य के लिए होता है,पर कुछ ही पूँजीपतियों के हाथ में आ जाने पर मनुष्य पर वर्चस्व स्थापित करने का माध्यम बन जाता है, कुछ ऐसे ही दौर से दुनिया गुजर रही है। इसलिए आज मनुष्य की नीजता स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों को बचाना जरूरी है,इसके लिए साहित्यकारों आगे होना होगा, जिसकी शुरुआत घर से करनी होगी। पारिवारिक संवाद से लेकर गाँवों की कउड़ा बतकही इसका सशक्त माध्यम बन सकती है।  ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे कार्यक्रमों हो निश्चित ही इसमें सफलता मिलेगी। 


इसके बाद सम्मान समारोह का कार्यक्रम हुआ जिसमें अभिषेक कुमार को उनके काव्य संग्रह 'बादल की अलगनी पर' के लिए राष्ट्रीय सम्मान 'रामदेव सिंह 'कलाधर' साहित्य सम्मान' देते हुए अंगवस्त्र, प्रशस्ती पत्र, स्मृति चिह्न, और 5100/- रुपये नकद देकर सम्मानित किया गया। 
काव्य संग्रह : 'बादल की अलगनी पर' के रचनाकार अभिषेक कुमार को राष्ट्रीय 'रामदेव सिंह 'कलाधर' सम्मान'

वरिष्ठ लोक-कलाकार बनवारी सिंह 'आजाद' को गोरखपुर मंडल सम्मान; 'बोधिसत्व लोक कला सम्मान' देते हुए अंगवस्त्र, प्रशस्ती पत्र, स्मृति चिह्न, 1100 रुपये नकद देकर सम्मानित किया गया। 
गोरखपुर मंडल सम्मान: 'बोधिसत्व लोक-कला सम्मान' बनवारी सिंह 'आजाद' को मिला।

तीसरा सम्मान जनपद देवरिया सम्मान; 'प्रेमचंद श्रीवास्तव स्मृति सम्मान' कवि योगेंद्र पाण्डेय को अंगवस्त्र, प्रशस्ती पत्र, स्मृति चिह्न, ₹1100 नकद देकर सम्मानित किया गया। 
जनपद देवरिया सम्मान : 'प्रेमचंद श्रीवास्तव स्मृति सम्मान' योगेन्द्र पाण्डेय को दिया गया। 

इस का का संचालन गोरखपुर के युवा कवि और विचारक डॉ. रवीन्द्र प्रताप सिंह ने किया।


कार्यक्रम के दूसरे और अंतिम सत्र में काव्यगोष्ठी हुई। सबसे पहले सम्मानित हुए कवियों ने अपनी रचनाएँ पढ़ीं। इसके बाद    जयप्रकाश मल्ल, सुजान सिंह, डॉ. रवीन्द्र प्रताप सिंह, कौशलेंद्र मिश्र, प्रवीण त्रिपाठी, डॉ. विजयश्री मल्ल, डॉ. महेश सिंह आदि ने अपनी-अपनी कविताओं का पाठ किया। इस सत्र की अध्यक्षता इंद्र कुमार दीक्षित ने की और संचालन सरोज पाण्डेय ने किया। इस कार्यक्रम में ग्राम भलुआ और क्षेत्र के तमाम प्रबुद्ध जन, ग्रामीण, महिलाएं और बच्चे उपस्थित थे।

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