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यूक्रेन-रूस युद्ध और उसके भू-राजनीतिक निहितार्थ

रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध, जो 2014 में क्रीमिया के रूसी कब्जे और डोनबास में अलगाववादी आंदोलनों के समर्थन के साथ शुरू हुआ और 24 फरवरी, 2022 को रूस के पूर्ण पैमाने पर आक्रमण के साथ चरम पर पहुंचा, आधुनिक विश्व के सबसे जटिल और गंभीर भू-राजनीतिक संकटों में से एक है। यह युद्ध केवल दो पड़ोसी देशों के बीच का क्षेत्रीय विवाद नहीं है, बल्कि इसने वैश्विक शक्ति संतुलन, आर्थिक स्थिरता, ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय कानून, और मानवाधिकारों को गहराई से प्रभावित किया है। इसने शीत युद्ध की याद दिलाई है, जहां विचारधाराओं, सैन्य शक्ति, और आर्थिक हितों का टकराव वैश्विक व्यवस्था को पुनर्परिभाषित कर रहा है। इस लेख में युद्ध के ऐतिहासिक मूल, कारणों, भू-राजनीतिक निहितार्थों, हाल के घटनाक्रमों और भारत जैसे तटस्थ देशों की भूमिका का गहन और तथ्यपरक विश्लेषण प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।  


मूल आलेख 
ऐतिहासिक संदर्भ
रूस और यूक्रेन के संबंधों की जड़ें मध्यकालीन कीव रस (9वीं से 13वीं सदी) तक जाती हैं, जो आधुनिक रूस, यूक्रेन, और बेलारूस की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक नींव थी। कीव, जो अब यूक्रेन की राजधानी है, उस समय इस क्षेत्र का धार्मिक, सांस्कृतिक, और व्यापारिक केंद्र था। मंगोल आक्रमणों (13वीं सदी) के बाद यह क्षेत्र विभिन्न साम्राज्यों के अधीन रहा। 17वीं और 18वीं सदी में यूक्रेन का अधिकांश हिस्सा रूसी साम्राज्य का हिस्सा बन गया, और बाद में 1922 में यह सोवियत संघ में शामिल हो गया। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन ने स्वतंत्रता हासिल की, जिसने अपनी राष्ट्रीय पहचान और संप्रभुता को मजबूत करने की कोशिश की। हालांकि, रूस ने यूक्रेन को अपने ऐतिहासिक और रणनीतिक प्रभाव क्षेत्र का हिस्सा माना, जिसने दोनों देशों के बीच तनाव को जन्म दिया।
1990 के दशक में यूक्रेन ने धीरे-धीरे पश्चिमी देशों, विशेष रूप से यूरोपीय संघ और नाटो, के साथ संबंधों को मजबूत करने का प्रयास शुरू किया। 2004 की ऑरेंज क्रांति ने इस पश्चिमी झुकाव को उजागर किया, जब नागरिकों ने रूस समर्थक सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया और लोकतांत्रिक सुधारों की मांग की। इस क्रांति ने यूक्रेन में रूस समर्थक और पश्चिम समर्थक गुटों के बीच विभाजन को और गहरा किया। 2013-2014 का यूरोमैदान आंदोलन इस तनाव का चरम था। तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच ने यूरोपीय संघ के साथ एक महत्वपूर्ण व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, जिसके जवाब में यूक्रेन के नागरिकों ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन शुरू किए। इन प्रदर्शनों ने यानुकोविच को सत्ता से हटा दिया, जिसे रूस ने पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमेरिका और यूरोपीय संघ, द्वारा प्रायोजित तख्तापलट माना।
इसके जवाब में, रूस ने मार्च 2014 में क्रीमिया पर कब्जा कर लिया और उसे अपने देश में मिला लिया। क्रीमिया का रणनीतिक महत्व रूस के लिए अत्यधिक था, क्योंकि यह काला सागर में सेवस्तोपोल नौसैनिक अड्डे का केंद्र है, जो रूस की नौसैनिक शक्ति और भू-आर्थिक रणनीति के लिए महत्वपूर्ण है। इसके बाद, रूस ने पूर्वी यूक्रेन के डोनेट्स्क और लुहांस्क क्षेत्रों में अलगाववादी आंदोलनों को समर्थन दिया, जिससे डोनबास युद्ध शुरू हुआ। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, इस युद्ध में 2014 से 2022 तक 14,000 से अधिक लोग मारे गए। इस संघर्ष ने यूक्रेन को आंतरिक रूप से अस्थिर किया और रूस-यूक्रेन संबंधों को अपूरणीय क्षति पहुंचाई।
24 फरवरी, 2022 को रूस ने यूक्रेन पर पूर्ण पैमाने पर सैन्य आक्रमण शुरू किया, जिसे उसने "विशेष सैन्य अभियान" का नाम दिया। रूस ने इस आक्रमण को यूक्रेन के "डी-नाज़ीकरण" और "डी-मिलिटराइज़ेशन" के लिए आवश्यक बताया, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इसे अवैध आक्रमण माना। इस युद्ध ने कीव, खार्किव, मारियुपोल, और अन्य शहरों को निशाना बनाया, जिससे भारी तबाही और मानवीय संकट पैदा हुआ। यह यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का सबसे बड़ा सशस्त्र संघर्ष बन गया।
युद्ध के कारण
यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण ऐतिहासिक, भू-राजनीतिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक कारकों का जटिल मिश्रण हैं। पहला प्रमुख कारण नाटो का पूर्वी यूरोप में विस्तार है। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद, नाटो ने पोलैंड, हंगरी, चेक गणराज्य, और बाल्टिक देशों (एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया) को अपने गठबंधन में शामिल किया। यह विस्तार रूस की सीमाओं के करीब पहुंचा, जिसे रूस ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माना। यूक्रेन का नाटो में शामिल होने की संभावना रूस के लिए अस्वीकार्य थी। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 2021 में अपने निबंध "On the Historical Unity of Russians and Ukrainians" में दावा किया कि नाटो का विस्तार रूस की "लाल रेखा" है।
दूसरा, रूस का यह विश्वास कि यूक्रेन उसका सांस्कृतिक और ऐतिहासिक हिस्सा है, युद्ध का एक महत्वपूर्ण कारक है। पुतिन ने बार-बार तर्क दिया कि यूक्रेन और रूस एक ही सभ्यता का हिस्सा हैं, और यूक्रेन की स्वतंत्रता सोवियत संघ के विघटन का एक कृत्रिम परिणाम है। यह विचारधारा रूस की नीतियों में गहराई से समाई हुई है और इसने यूक्रेन पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए रूस को प्रेरित किया।
तीसरा, यूक्रेन की आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता ने संकट को बढ़ावा दिया। 2004 की ऑरेंज क्रांति और 2014 के यूरोमैदान आंदोलन ने यूक्रेन के पश्चिमी झुकाव को स्पष्ट किया। यूरोमैदान ने रूस समर्थक यानुकोविच को सत्ता से हटा दिया, जिसे रूस ने पश्चिमी हस्तक्षेप माना। इसके जवाब में, रूस ने क्रीमिया पर कब्जा किया और डोनबास में अलगाववादियों को समर्थन दिया।
चौथा, काला सागर का रणनीतिक महत्व है। काला सागर रूस के लिए भू-आर्थिक और सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भूमध्य सागर और वैश्विक व्यापार मार्गों तक पहुंच प्रदान करता है। क्रीमिया का सेवस्तोपोल नौसैनिक अड्डा रूस की समुद्री शक्ति का केंद्र है। यूक्रेन का पश्चिमी देशों के साथ निकटता बढ़ाना रूस के लिए इस क्षेत्र में अपनी स्थिति को कमजोर करने वाला माना गया।
पांचवां, आर्थिक कारक, विशेष रूप से ऊर्जा और कृषि संसाधन, युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। रूस यूरोप का प्रमुख प्राकृतिक गैस आपूर्तिकर्ता था, और यूक्रेन की पाइपलाइनें इस आपूर्ति के लिए महत्वपूर्ण थीं। यूक्रेन और रूस दोनों ही गेहूं, मक्का, और सूरजमुखी तेल के प्रमुख निर्यातक हैं, और इन संसाधनों पर नियंत्रण युद्ध का एक अंतर्निहित उद्देश्य रहा है।
भू-राजनीतिक निहितार्थ
यूक्रेन-रूस युद्ध ने वैश्विक शक्ति संतुलन को गहराई से प्रभावित किया है। नाटो और यूरोपीय संघ ने इस संकट में अपनी एकता को मजबूत किया। 2022-2024 तक, अमेरिका ने यूक्रेन को $50 बिलियन से अधिक की सहायता प्रदान की, जिसमें हिमार्स रॉकेट सिस्टम, पैट्रियट मिसाइल डिफेंस सिस्टम, और जेवलिन मिसाइलें शामिल थीं। नाटो ने पूर्वी यूरोप में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाई, और 2023 में "एयर डिफेंडर" अभ्यास आयोजित किया, जो इसका सबसे बड़ा युद्धाभ्यास था। जर्मनी ने अपने रक्षा बजट को 100 बिलियन यूरो तक बढ़ाया और यूक्रेन को लेपर्ड 2 टैंक प्रदान किए। फिनलैंड और स्वीडन, जो पहले तटस्थ थे, 2022 और 2023 में नाटो में शामिल हुए, जिसने रूस की रणनीतिक स्थिति को और कमजोर किया।
रूस ने पश्चिमी प्रतिबंधों के जवाब में चीन के साथ अपने आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को गहरा किया। 2023 में, रूस और चीन ने "पावर ऑफ साइबेरिया 2" पाइपलाइन समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसने रूस की ऊर्जा निर्यात को एशिया की ओर मोड़ा। रूस ने उत्तर कोरिया और ईरान से भी सैन्य सहयोग बढ़ाया। उत्तर कोरिया ने रूस को ड्रोन और तोपखाने की आपूर्ति की, जबकि ईरान ने शाहेद-136 ड्रोन प्रदान किए। ये गठजोड़ वैश्विक शक्ति संतुलन में एक नया ध्रुव बना रहे हैं, जो पश्चिमी देशों के लिए चुनौती है।
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वैश्विक दक्षिण के देशों, जैसे भारत, ब्राजील, और दक्षिण अफ्रीका, ने तटस्थ रुख अपनाया। भारत ने रूस के खिलाफ प्रतिबंधों का समर्थन नहीं किया और 2023 में रूस से तेल आयात को 40% तक बढ़ाया। ब्राजील ने रूस के साथ अपने व्यापार को बनाए रखा, विशेष रूप से उर्वरक आयात में, जबकि दक्षिण अफ्रीका ने कूटनीतिक तटस्थता अपनाई। यह तटस्थता वैश्विक दक्षिण की बढ़ती स्वायत्तता को दर्शाती है।
युद्ध ने ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा को गहराई से प्रभावित किया। 2022 में नॉर्ड स्ट्रीम 1 और 2 पाइपलाइनों पर हुए हमले (जिनके जिम्मेदार पक्ष पर कोई अंतरराष्ट्रीय सहमति नहीं है) ने यूरोप में ऊर्जा संकट को गहराया। यूरोप ने कतर, नॉर्वे, और अमेरिका से गैस आयात बढ़ाया, लेकिन ऊर्जा कीमतों में 30% की वृद्धि हुई, जिसने जर्मनी और इटली जैसे देशों में औद्योगिक उत्पादन को प्रभावित किया। विश्व बैंक के अनुसार, 2022-2023 में ऊर्जा कीमतों में वृद्धि ने यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति को 8% तक बढ़ाया।
खाद्य सुरक्षा पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। यूक्रेन और रूस वैश्विक गेहूं निर्यात का 25% हिस्सा प्रदान करते हैं। युद्ध ने इस आपूर्ति को बाधित किया, जिससे मिस्र, लेबनान, और नाइजीरिया जैसे देशों में खाद्य संकट गहराया। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, 2022 में वैश्विक खाद्य कीमतें 20% बढ़ीं। तुर्की और संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में जुलाई 2022 में हुआ काला सागर अनाज समझौता यूक्रेन से अनाज निर्यात को फिर से शुरू करने में सहायक रहा, लेकिन रूस ने बार-बार इस समझौते को बाधित किया।
मानवाधिकार और युद्ध अपराध युद्ध का दुखद पहलू हैं। बुचा और मारियुपोल में नागरिक हत्याओं की जांच अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने शुरू की। बुचा में 2022 में 400 से अधिक नागरिकों की लाशें मिलीं, जिन्हें युद्ध अपराध माना गया। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2024 तक यूक्रेन में 14 मिलियन लोग विस्थापित हुए और 10,000 से अधिक नागरिक मारे गए। युद्ध ने यूक्रेन के बुनियादी ढांचे, जैसे अस्पताल, स्कूल, और बिजली संयंत्र, को भारी नुकसान पहुंचाया।
सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
युद्ध ने यूक्रेन और रूस में सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन लाए हैं। यूक्रेन में, युद्ध ने राष्ट्रीय पहचान को मजबूत किया। 2022 में, यूक्रेन ने रूसी भाषा में प्रसारण पर प्रतिबंध लगाए और यूक्रेनी भाषा को बढ़ावा देने के लिए नए कानून लागू किए। यह रूस के सांस्कृतिक प्रभाव को कम करने का प्रयास था। यूक्रेनी समाज में एकता बढ़ी, लेकिन पूर्वी यूक्रेन में रूसी भाषी समुदायों के बीच तनाव भी उभरा। रूस में, युद्ध ने सामाजिक असंतोष को बढ़ाया। विपक्षी नेता एलेक्सी नवलनी की 2024 में मृत्यु (जिसे कुछ स्रोत हत्या मानते हैं, हालांकि आधिकारिक पुष्टि अस्पष्ट है) ने मॉस्को और सेंट पीटर्सबर्ग में प्रदर्शन शुरू किए, जिन्हें सरकार ने दबा दिया।
हाल के घटनाक्रम 
2024 में, तुर्की और संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में शांति वार्ताएँ विफल रहीं। रूस ने यूक्रेन का तटस्थ दर्जा और डोनबास-क्रीमिया पर नियंत्रण की मांग की, जबकि यूक्रेन ने क्षेत्रीय अखंडता की शर्त रखी। यूक्रेन ने 2023-2024 में जवाबी हमले तेज किए, जिसमें क्रीमियन ब्रिज और रूसी तेल डिपो पर ड्रोन हमले शामिल थे। इन हमलों ने रूस की सैन्य आपूर्ति को प्रभावित किया।
पश्चिमी देशों में "यूक्रेनी थकान" उभरी। अमेरिका में 2024 के राष्ट्रपति चुनाव के बाद, रिपब्लिकन नेताओं ने यूक्रेन को सहायता पर सवाल उठाए, क्योंकि यह घरेलू प्राथमिकताओं को प्रभावित कर रही थी। स्लोवाकिया और नीदरलैंड्स ने सहायता में कटौती की। रूस ने उत्तर कोरिया से ड्रोन और ईरान से शाहेद-136 ड्रोन प्राप्त किए, जिसने उसकी सैन्य क्षमता को बढ़ाया। रूस में आंतरिक असंतोष बढ़ा, विशेष रूप से नवलनी की मृत्यु के बाद, लेकिन पुतिन ने सत्ता पर नियंत्रण बनाए रखा।
भारत का दृष्टिकोण
भारत ने तटस्थ रुख अपनाया, रूस के खिलाफ प्रतिबंधों का समर्थन नहीं किया, और 2023 में रूस से तेल आयात को 40% तक बढ़ाया। यह भारत की ऊर्जा जरूरतों के लिए महत्वपूर्ण था। भारत ने उर्वरक आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए विशेष पैकेज लागू किए, जो कृषि अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक था। संयुक्त राष्ट्र में, भारत ने क्रीमिया में मानवाधिकार उल्लंघनों की निंदा करने वाले प्रस्तावों के खिलाफ मतदान किया और शांति वार्ताओं का समर्थन किया। भारत की यह नीति वैश्विक दक्षिण की स्वायत्तता को दर्शाती है।
निष्कर्ष
यूक्रेन-रूस युद्ध वैश्विक स्थिरता, अर्थव्यवस्था, और सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती है। यह पश्चिमी एकता, रूस-चीन गठजोड़, और वैश्विक दक्षिण की स्वायत्तता को उजागर करता है। शांति वार्ताएँ और कूटनीति इसका समाधान हो सकती हैं। भारत की तटस्थ भूमिका कूटनीतिक समाधान में महत्वपूर्ण हो सकती है। यह युद्ध आधुनिक विश्व में शक्ति, संसाधन, और विचारधाराओं के टकराव की जटिलता को दर्शाता है।
संदर्भ :  
1. United Nations Office for the Coordination of Humanitarian Affairs (2024). *Ukraine Humanitarian Needs Overview*.  
2. International Monetary Fund (2023). *World Economic Outlook: Navigating Global Divergences*.  
3. Foreign Affairs (2024). "The Russia-China Axis: A New Geopolitical Reality."  
4. BBC News (2024). "Russia-Ukraine War: Key Developments in 2024."  
5. Indian Council of World Affairs (2023). "India’s Neutral Stance in the Russia-Ukraine Conflict."  
6. Food and Agriculture Organization (2022). *The State of Food Security and Nutrition in the World*.  
7. Carnegie Endowment for International Peace (2024). "Russia’s Alliances with North Korea and Iran."  
8. Drishti IAS (2024). "Russia-Ukraine Conflict: Implications for India."

संपर्क : महेश सिंह, mahesh.pu14@gmail.com

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