स्ता निस्लावस्की के अभिनय सिद्धांत की परम्परा को नाट्य जगत मे एक वरदान के रुप मे माना जाता रहा हैं , इस सिद्धांत से प्रभावित होकर अनेक नाट्ककारों व निर्देशकों ने संसारिक जीवन के अनुभवो को हूबहू मंच पर ला कर रंगमंच के इतिहास मे क्रांति ला दी , परंतु विश्वयुद्ध की त्रासदी ने मानवीय मूल्यों व मानव के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया , इन्ही प्रश्नो ने एक नए रंगमंच को जन्म दिया , इन विचारो से प्रभावित हो कर नाट्क लिखे और खेले जाने लगे , इसी विचार ने बॉक्स रंगमंच के बंधे बंधाये खांचे से रंगमंच को बाहर निकाला और अनेक नई शैलियों और फार्मों का उदय हुआ , जिसमे विसंगति के नाटक , प्रयोगवादी रंगमंच , टोटल थियटर व शैलीबद्ध अभिनय आदि का जन्म हुआ। शैलीबद्धता दो विपरीत तत्वो का संयोग हैं , जब दो विपरीत तत्व एक ही समय पर एक काम करने लगते हैं तो एक अनचाही स्थिति रचित होने लगती हैं तब यह बनी बनायी धारणा , सोच ओर आदर्श को तोड़ देती हैं । शैलीबद्ध अभिनय रंगमंच का एक सशक्त माध्यम हैं , जो रंगमंच की इच्छापूर्ति का माध्यम हैं , शैलीबद्ध अभिनय अपने साथ सभी प्रकार की शैलियों , फार्मों आदि को आने का ...
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