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Showing posts from January, 2022

यह खेल खत्म करों कश्तियाँ बदलने का (आदिवासी विमर्श सपने संघर्ष और वर्तमान समय)

“सियाह रात नहीं लेती नाम ढ़लने का यही वो वक्त है सूरज तेरे निकलने का कहीं न सबको संमदर बहाकर ले जाए ये खेल खत्म करो कश्तियाँ बदलने का” [1] आज के समय एवं समाज का मूल्यांकन करे तो हम देखते हैं कि यह फर्क करना मुश्किल है कि भूमण्डलीकरण ने इस पर अपना प्रभाव डाला या अपना प्रकोप फैलाया। वास्तव में इसकी जगमगाहट आँखों में चुभती सी मालूम होती है। एक तरफ समाज क्रांन्तिकारी परिवर्तनों का गवाह बना रहा , वहीं एक समाज ऐसा भी रहा जो गौरवहीन , गतिहीन और निष्क्रिय बना रहा। इस समाज की पहचान कभी सम्मानजनक नहीं रही बल्कि उसे (बर्बर) , हिंसक , असभ्य , गंवारू पंरपरा का ही माना गया तथा इसे मुख्यधारा से अलग ही रखा गया ना ही सभ्य समाज ने इसे अपना हिस्सा माना और न ही इस समाज ने कभी स्वयं सभ्य समाज में शामिल होने की चेष्टा ही की। इस आदिवासी समाज का आहत इतिहास आज भी हमारे सामने उपलब्ध है और अपने साथ हुए इस सौतेले व्यवहार पर सवाल उठाता है- “ रोशनी की हमारी खोज खत्म हो चुकी है।   अब हम अंधेरा ही ओढ़ते बिछाते हैं।   हमारे हिस्से अंधेरा ही आया है   और अब उसी में अपना काम निकालना सीख गये हैं   अंधेर

चयनित हिंदी फिल्मों में होमोसेक्शुअलिटी का रूपांकन : दोस्ताना, गर्लफ्रेन्ड, फायर, पेज थ्री

समाज , होमोसेक्स्शुलिटी और पितृसत्ता दुनिया की लगभग सभी सभ्यताओं में महिला और पुरुष के रिश्ते को ही स्वीकारा गया और इसे ही वैध और पवित्र माना गया। इसके बावजूद इन रिश्तों के इतर महिला- महिला , पुरुष-पुरुष और ट्रांसजेंडर रिश्ते हर काल में मौजूद रहे हैं। पुराने साहित्य में ऐसे रिश्तों के होने के तमाम संकेत और उदाहरण मिलते हैं।   पर इन रिश्तों को सामज ने वैधता नहीं दी। हमेशा ही नीची नजर से देखा गया और मुख्य समाज से काट दिया गया। कहीं-कहीं दंड का प्रावधान भी रहा है। लेकिन पितृसत्ता और मानवीय चुनाव के प्रति बढ़ती समझ के साथ वर्तमान समय में बहुत सारे देशों में होमोसेक्शुअल संबधों को हेट्ररोसेक्शुअल संबंधों की तरह ही वैध करार दे दिया गया है। अब कई देशों में ऐसे लोग साथ रह सकते हैं , शादी कर सकते हैं।   फोटो : गूगल से साभार  भारत में होमोसेक्शुअलिटी गैरकानूनी है। बहुत से लोगों के विरोध और कानूनी लड़ाई करने बाद इन संबंधों को 2009 में दिल्ली हाईकोर्ट ने गैर कानूनी नहीं माना। लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और 2014 में फिर से होमोसेक्शुलिटी को गैरकानूनी करार दे दिया गया। बावजूद इसके कि वात्याय

भक्ति आंदोलन - एक परिदृश्य

भारतीय इतिहास में सामाजिक , धार्मिक एवं साहित्यिक दृष्टी से भक्ति आंदोलन एक युगांतकारी घटना थी। जिसने भारतीय समाज एवं दर्शन को नये सिरे से परिवर्तित किया। यह वही युग था जिसके कारण तुलसीकृत ‘ रामचरितमानस ’ प्रत्येक भारतीय का कंठहार बनी , जिसने मंदिरों की प्रार्थनाओं को सूर के पदों से सजाए। जिसने कबीर , रैदास की रचनाओं को सामान्य जन-जीवन से जोड़कर समाज के उपेक्षित वर्ग को अपनी आस्मिता का भान   कराया। जिसने चैपालों को जायसी से आख्यान दिये। एक मायने में यह एक सांस्कृतिक व सामाजिक क्रान्ति थी। जिसने संपूर्ण भारत वर्ष   को एक नये तरीके से सोचने पर विवश किया।             भक्ति , लौकिक जगत की सर्वोच्च उत्कृष्ठ , अलौकिक भाव , वस्तु या उपलब्धि है। मानवीय सभ्यता के प्रथम एवं प्रकृति के साथ-साथ स्वयं के स्थायित्व शोध के साथ ही मानवीय जीवन में भक्ति का प्रवेश हुआ। भक्ति ‘ शब्द ’ संस्कृत की भज् धातु में क्तिन् प्रत्यय के संसर्ग से बना है। जिसका अर्थ है भगवान की सेवा करना। [1]   ईश्‍वर के प्रति परम अनुराग एवं नि:शेष भाव से आत्म समर्पण ही भक्ति है। भक्ति ईश्‍वर को प्राप्त करने का सहज मार्ग है। महर्ष