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Showing posts from April, 2024

प्रकृति, समाज, प्रेम, संस्कृति और नदियों को बयां करती कविताएँ

राकेश कबीर का कविता संग्रह ‘तुम तब आना’ चार विभागों में है। यह संग्रह लोकभारती प्रकाशन से प्रकाशित है। इस काव्य संग्रह में लगभग 97 कविताएं लिखी हैं जिसमें पहले विभाग में ‘ कुछ अपनी बात कहूं’, ‘प्रकृति के रंग’, ‘नीति, अनीति, कुनीति’ और कोविड : दूसरी लहर, मौत का मंजर है। इस संग्रह की कविताओं में रचनाकार ने कई बिंदुओं पर साहित्य के माध्यम से अपनी बात बड़े सरल तरीके से कही है जिसमें कोई लाग लपेट नहीं मिलती। इस संग्रह के रचनाकार का क्षेत्र बृहत् बड़ा है, जिसमें वे कई तरह के समाज से जुड़ते हैं और वही जुड़ना लेखक को चारों दिशाओं में देखने के लिए तैयार करता है। काव्य शास्त्र में विद्वानों ने माना है कि ‘ काव्य के मूल प्रेरक तत्व को काव्यहेतु कहते हैं। अर्थात सही मायनों में कहे तो काव्य का अनिवार्य एवं एकमात्र हेतु है – प्रतिभा , और व्युत्पत्ति तथा अभ्यास प्रतिभा के ही परिष्कारक, पोषक एवं संवर्धक हेतु हैं। ’ 1 (भारतीय तथा पाश्चात्य काव्यशास्त्र का संक्षिप्त विवेचन , अशोक प्रकाशन , पृष्ठ संख्या 17) अत: कवि की प्रतिभा , व्युत्पत्ति तथा अभ्यास इस काव्य संग्रह में हैं। इस संग्रह को जब पाठक पढ़ें

जीवन एक बहती धारा....

समीक्षक - जसविन्दर कौर बिन्द्रा लगातार साहित्य लेखन से जुड़ी सुधा ओम ढींगरा अपने नवीन कहानी संग्रह 'चलो फिर से शुरू करें' के साथ पाठकों के सम्मुख उपस्थित हुई हैं। लंबे समय से प्रवास में रहने के कारण सुधा जी के साहित्य में प्रवासी भारतीयों को मुखर रूप से देखा जा सकता है। उनसे जुड़े पारिवारिक रिश्तों व अन्य समस्याओं को कहानी के केंद्र में रखकर, भारत व प्रवासी संदर्भों के बीच पुल का काम भी करती है और पाठकों को वहाँ के परिवेश से परिचित भी करवाती है, जिनकी जानकारी हमें यहाँ बैठे नहीं होती। सामान्यतः भारतीयों को लगता है कि विदेशों और विशेषकर अमरीका में बसने वालों को भला कोई तकलीफ या परेशानी कैसे हो सकती है! 'वे अजनबी और गाड़ी का सफर' कहानी हमें एक ऐसे विषय से अवगत करवाती है, जिसे अक्सर फिल्मों व अंतर्राश्ट्रीय सीरियलों में देखा जाता है। दो भारतीय पत्रकार युवतियों ने एक चीनी युवती को यूरोपीय पुरुष के साथ रेलगाड़ी में जाते देखा परन्तु वह लड़की बहुत तकलीफ में प्रतीत हो रही थी। उन दोनों युवतियों ने किस होशियारी व सर्तकता से उस लड़की को ड्रग माफिया से मुक्त करवाया, वह कहानी पढ़ने से ही प

मंजी हुई भाषा और जबरदस्त शिल्प-विन्यास

समीक्षक : डॉ. रमाकांत शर्मा 'जोया देसाई कॉटेज” जाने-माने कथाकार, उपन्यासकार और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका “विभोम स्वर” के संपादक पंकज सुबीर का हाल में प्रकाशित नया कहानी संग्रह है। इस संग्रह की शुरूआत “भूमिका”, “प्राक्कथन” या “अपनी बात” जैसी औपचारिकता से नहीं हुई है। उन्होंने सीधे अपनी कहानियों के माध्यम से पाठकों तक पहुंचना बेहतर समझा है। यह रचना और पाठक को लेकर उनके आत्मविश्वास को प्रतिबिंबित करता है। उनका कहानी कहने का अपना अंदाज है। कहानियों के शीर्षक भी उनके इस अंदाज को बयां करते हैं। संग्रह की पहली कहानी “स्थगित समय गुफा के वे फलाने आदमी” कोरोना काल की उस विभीषिका को सामने लाती है, जो शायद ही कहीं और उजागर हुई हो। संक्रमित हो जाने के डर से लाशों का अंतिम संस्कार करने का साहस परिवार के लोग भी नहीं कर पाते तो अन्य लोगों से कैसी अपेक्षा। इस काम को अंजाम देने के लिए चार लोग स्वैच्छिक रूप से रात-दिन जुटे रहते हैं। रात गए सेल फोन पर मदद के लिए आए उस महिला के कॉल को वे नजरअंदाज नहीं कर पाते जिसके पिता की मौत हो गई है, लाश पड़ी है और घर में उसके और उसकी मां के अलावा और कोई नहीं है। घर का

एक आदिवासी भील सम्राट ने प्रारंभ किया था ‘विक्रम संवत’

-जितेन्द्र विसारिया जैन साहित्य के अनुसार मौर्य व शुंग के बाद ईसा पूर्व की प्रथम सदी में उज्जैन पर गर्दभिल्ल (भील वंश) वंश ने मालवा पर राज किया। राजा गर्दभिल्ल अथवा गंधर्वसेन भील जनजाति से संबंधित थे,  आज भी ओडिशा के पूर्वी भाग के क्षेत्र को गर्दभिल्ल और भील प्रदेश कहा जाता है। मत्स्य पुराण के श्लोक के अनुसार :           सन्तैवाध्रा  भविष्यति दशाभीरास्तथा नृपा:।           सप्तव  गर्दभिल्लाश्च  शकाश्चाष्टादशैवतु।। 7 आंध्र, 10 आभीर, 7 गर्दभिल्ल और 18 शक राजा होने का उल्लेख है। 1 पुराणों में आन्ध्रों के पतन के पश्चात् उदित अनेक वंश, यथा (सात श्री पर्वतीय आन्ध्र (52 वर्ष), दस आभीर (67 वर्ष) सप्त गर्दभिल्ल (72 वर्ष) अठारह शक (183 वर्ष) आठ यवन (87 वर्ष) इत्यादि सभी आन्ध्रों के सेवक कहे गये हैं। इन राजवंशों में सप्त गर्दभिल्लों का उल्लेख है। जैनाचार्य मेरुतुंग रचित थेरावलि में उल्लेख मिलता है कि गर्दभिल्ल वंश का राज्य उज्जयिनी में 153 वर्ष तक रहा। 2 'कलकाचार्य कथा' नामक पाण्डुलिपि में वर्णित जैन भिक्षु कलकाचार्य और राजा शक (छत्रपति शिवाजी महाराज वस्तु संग्रहालय, मुम्बई) (फोटो : विकि