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चित्तौड़गढ़ दुर्ग भ्रमण

यूँ तो राजस्थान किलों के लिए प्रसिद्ध है। राजस्थान के हर बड़े शहर में एक किला (दुर्ग) आपको अवश्य दिख जाएगा। परंतु राजस्थान के चित्तौड़गढ़ का किला अपने आप में बेहद खास है। चित्तौड़गढ़ का किला भारत का सबसे विशाल दुर्ग है। चित्तौड़गढ़ मेवाड़ राज्य की राजधानी थी। किले की चारदीवारी भी अपने आप में बेहद खास है। यहां आने वाले पर्यटकों में राजस्थान के निवासियों के अलावा भारत के अलग-अलग राज्यों के निवासी भी आते हैं। इसके अलावा देश-विदेश के तमाम सैलानी रोजाना हजारों की तादाद में यहाँ आते हैं। यह किला मौर्य राजवंश के सम्राट चित्रांगद मौर्य ( चित्रांग ) ने बनवाया था। यह एक विश्व विरासत स्थल है। मेवाड़ के प्राचीन सिक्कों पर एक तरफ चित्रकूट नाम अंकित मिलता है। इस किले की बहुत प्रशंसा सुनने के बाद मेरा मन भी चित्तौड़गढ़ दुर्ग को देखने के लिए लालायित हो उठा था। बचपन में पुस्तकों में चित्तौड़गढ़ के किले के बारे में एक चित्र देखा था और कुछ कहानियां भी सुनी थी जो राजपूत राजा महाराणा प्रताप के बारे में थी। दरअसल जब मैं सन 2022 में मेवाड़ विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्य करने के लिए आया त

हद या अनहद कविता संग्रह को मिला जनकवि रामजी लाल चतुर्वेदी सम्मान

छतरपुर। मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन की छतरपुर इकाई द्वारा जनकवि रामजी लाल चतुर्वेदी स्मृति सम्मान 2023, युवा कवि सुनील कुमार शर्मा की कृति हद या अनहद को दिया गया। गांधी आश्रम में आयोजित इस सम्मान समारोह में डॉ सुनील कुमार शर्मा को हिन्दी सम्मेलन की छतरपुर इकाई के सदस्यों द्वारा सम्मान पत्र, शाल श्रीफल और सम्मान राशि के द्वारा अलंकृत किया गया। सम्मान समारोह में जनकवि रामजी लाल चतुर्वेदी पर आधारित पुस्तक "हमारे नन्ना" का लोकार्पण अतिथियों एवम् नन्ना के परिवारजनों के द्वारा किया गया। लोकार्पित ग्रंथ का संपादन डॉ बहादुर सिंह परमार, शिवेंद्र शुक्ला और नीरज खरे द्वारा किया गया है। इस अवसर पर नन्ना का पुण्य स्मरण अतिथियों एवम् उनके संबंधियों द्वारा किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत, महाकवि तुलसीदास, प्रेमचंद, हरिशंकर परसाई, एवम् रामजीलाल चतुर्वेदी के चित्रों पर अतिथियों द्वारा माल्यार्पण एवम् दीप प्रज्वलन के साथ हुई। इकाई के अध्यक्ष नीरज खरे ने समस्त अतिथियों का परिचय कराते हुए उनका पारंपरिक स्वागत कराया। इसके उपरांत कबीर भजन हुआ। इकाई के संयोजक प्रो बहादुर सिंह परमार ने पुरस्कार

गिरिडीह में याद किए गए अवधी भाषा के प्रगतिशील कवि जुमई खां 'आजाद'

दिनांक 11.08.24 को जन संस्कृति मंच, गिरिडीह और 'परिवर्तन' पत्रिका के साझे प्रयत्न से गिरिडीह कॉलेज, गिरिडीह के न्यू बिल्डिंग में अवधी भाषा के प्रगतिशील कवि जुमई खां 'आजाद' स्मृति संवाद के तहत जुमई खां 'आजाद' की कविताओं का पाठ किया गया तथा उनकी कविताओं पर बतौर मुख्य वक्ता अवधी और हिंदी के युवा कवि-आलोचक डॉ.शैलेंद्र कुमार शुक्ल ने व्याख्यान दिया।  जुमई खां का जन्म 05 अगस्त 1930 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला के गोबरी गांव में हुआ था। वे समाजवादी विचारधारा से ताजिंदगी जुड़े रहे और डॉ.राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण के करीबी थे। समाजवादी आंदोलनों में उनको जेल भी जाना पड़ा था। शैलेंद्र ने बताया कि हिंदी और अवधी कविताओं की कुल इक्कीस किताबें प्रकाशित हैं। उनका आखिरी अवधी कविता संग्रह का नाम 'कथरी' है। शैलेंद्र ने कहा कि अवधी के कवि 'पढ़ीस ' के बाद जुमई खां की कविताओं में सबसे अधिक वर्ग चेतना की सहज अभिव्यक्ति हुई है। वे ऐसे कवि थे जो जीवन भर खेती और कविकर्म से जुड़े रहे।  अपने बीज वक्तव्य में डॉ. बलभद्र ने कहा कि जुमई खां मध्यकाल के कवि तुलसीदास

'प्रेमचंद का भारत' विषय पर टी.डी.बी. कॉलेज, रानीगंज में हुआ एकदिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन

प्रेमचंद जी की 144वीं जयंती के अवसर पर दिनांक- 31.07.2024, को त्रिवेणी देवी भालोटिया कॉलेज, रानीगंज हिन्दी विभाग एवं IQAC के संयुक्त तत्वाधान में एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी (प्रेमचंद का भारत) का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत सर्वप्रथम मुंशी प्रेमचंद और कवि गुरू रवीन्द्रनाथ टैगोर जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ हुआ। संगोष्ठी का आरंभ अतिथियों द्वारा द्वीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत में छठे सेमेस्टर की छात्रा खुशी मिश्रा ने 'वर दे वीणा वादिनी' वन्दना का गायन किया। तत्पश्चात बीए (ऑनर्स) प्रथम सेमेस्टर के छात्रों ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आये प्रोफेसर आशुतोष पार्थेश्वर और विशिष्ट वक्ता के रूप में डॉ. साबेरा खातून उपस्थिति रहीं। इस कार्यक्रम में कॉलेज के TIC  प्रोफेसर मोबिनुल इस्लाम, TCS अनूप भट्टाचार्य और IQAC कॉर्डिनेटर डॉ. सर्वानी बनर्जी ने कथाकार प्रेमचंद के संदर्भ में अपने-अपने विचार रखें। इस संगोष्ठी की अध्यक्षता हिंदी विभाग की डॉ. मंजुला शर्मा ने किया। प्रथम सत्र का आरम्भ अपराह्ण 12:30

प्रेमचंद की कहानी 'पूस की रात' का पाठ-परिचर्चा एवं परिवर्तन के 34वें अंक का लोकार्पण सम्पन्न

जन संस्कृति मंच के तत्वावधान में कर्बला रोड स्थित सुमित्रा भवन में 'प्रेमचंद स्मृति संवाद' के तहत प्रेमचंद की बहुपठित कहानी 'पूस की रात' का पाठ हुआ और अनेक लेखकों और विचारकों ने इस कहानी पर बातचीत की। साथ ही डॉ.महेश सिंह के संपादन में निकलने वाली ई पत्रिका 'परिवर्तन' के चौतीसवें अंक का लोकार्पण भी हुआ। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि बंगला की कवयित्री, आलोचक और अनुवादक डॉ.मधुश्री सेन सान्याल ने 'परिवर्तन' का लोकार्पण करते हुए कहा कि जिन प्रेमचंद की स्मृति में यह आयोजन है वे महान कथाकार के साथ साथ एक दृष्टिसंपन्न संपादक भी थे। पत्रिका का संपादन बहुत रचनात्मक कार्य है। संपादक महेश सिंह ने पत्रिका के पूर्व प्रकाशित कई सामान्य अंकों के साथ साथ विशेषांकों की जानकारी दी और अगला अंक दलित महिला और आदिवासी पर केंद्रित करने की योजना को साझा किया। तत्पश्चात बलभद्र ने 'पूस की रात' कहानी का पाठ किया। युवा कवि एवं आलोचक शैलेंद्र कुमार शुक्ल ने कहा कि इस कहानी में एक किसान के मजदूर में तब्दील होने के साथ साथ वर्ग संघर्ष की चेतना की बारीक अभिव्यक्ति है। उन्होंने प्रसिद

साधारण से असाधारण की यात्रा : रामनगीना मौर्य की कहानियाँ

लखनऊ निवासी प्रतिष्ठित लेखक रामनगीना मौर्य ने पिछले कुछ वर्षों में ‘आखिरी गेंद’, ‘आप कैमरे की निगाह में हैं’, ‘साॅफ्ट काॅर्नर’ व ‘यात्रीगण कृपया ध्यान दें’, ‘मन बोहेमियन’, ‘आगे से फटा जूता’ एवं ‘खूबसूरत मोड़’ जैसे बेहतरीन कहानी-संग्रह पाठकों के सुपुर्द किया है। कहानीकार शिवमूर्ति के विचारानुसार-‘‘रामनगीना मौर्य आम जिन्दगी की कहानियां कहते हैं। जहां से ये अपनी कहानियों के पात्र लाते हैं, वहां तक सामान्यतः अन्य कथाकारों की निगाह नहीं पहुॅचती या फिर वे उधर निगाह डालना जरूरी नहीं समझते।...इसीलिए मैं रामनगीना मौर्य को उपेक्षित और अलक्षित जिन्दगी का विशिष्ट कथाकार कहूंगा।’’- (खूबसूरत मोड़, दूसरी आवृत्ति, पृ-7) रामनगीना जी की कहानियां आम जीवन की छोटी-से-छोटी घटना, भाव, वस्तु तथा स्थिति को पकड़ लेती हैं तथा उनके माध्यम से जीवन के उन अनछुए पहलुओं को प्रकाशित करती हैं जिसे जिन्दगी को सरसरी नजर से जीने वाले साधारण लोग नजरअंदाज कर जाते हैं। इस मामले में आपके विषय चयन की बारीकी व अंदाज-ए-बयान की महीनता पाठक को बांधकर रख लेती है। घर-कार्यालय के साधारण क्रिया-कलाप तथा मामूली वस्तुओं को चुनते हुए आपने उस

प्रकृति, समाज, प्रेम, संस्कृति और नदियों को बयां करती कविताएँ

राकेश कबीर का कविता संग्रह ‘तुम तब आना’ चार विभागों में है। यह संग्रह लोकभारती प्रकाशन से प्रकाशित है। इस काव्य संग्रह में लगभग 97 कविताएं लिखी हैं जिसमें पहले विभाग में ‘ कुछ अपनी बात कहूं’, ‘प्रकृति के रंग’, ‘नीति, अनीति, कुनीति’ और कोविड : दूसरी लहर, मौत का मंजर है। इस संग्रह की कविताओं में रचनाकार ने कई बिंदुओं पर साहित्य के माध्यम से अपनी बात बड़े सरल तरीके से कही है जिसमें कोई लाग लपेट नहीं मिलती। इस संग्रह के रचनाकार का क्षेत्र बृहत् बड़ा है, जिसमें वे कई तरह के समाज से जुड़ते हैं और वही जुड़ना लेखक को चारों दिशाओं में देखने के लिए तैयार करता है। काव्य शास्त्र में विद्वानों ने माना है कि ‘ काव्य के मूल प्रेरक तत्व को काव्यहेतु कहते हैं। अर्थात सही मायनों में कहे तो काव्य का अनिवार्य एवं एकमात्र हेतु है – प्रतिभा , और व्युत्पत्ति तथा अभ्यास प्रतिभा के ही परिष्कारक, पोषक एवं संवर्धक हेतु हैं। ’ 1 (भारतीय तथा पाश्चात्य काव्यशास्त्र का संक्षिप्त विवेचन , अशोक प्रकाशन , पृष्ठ संख्या 17) अत: कवि की प्रतिभा , व्युत्पत्ति तथा अभ्यास इस काव्य संग्रह में हैं। इस संग्रह को जब पाठक पढ़ें