समसामायिक प्रसंगों पर पाठकों को बैचेनी और तिलमिलाहट के साथ कुछ सोचने को मजबूर करने वाले व्यंग्य और कटाक्ष की पैनी नजर रखने वाले धर्मपाल महेंद्र जैन का नाम व्यंग्य-विधा में चिर-परिचित है। इस व्यंग्य-संग्रह में 44 आलेख हैं, जिसकी भूमिका में डॉ. रमेश तिवारी जी कहते हैं कि “विचार से प्रगतिशील और स्वभाव से मृदुभाषी धर्मपाल जी इस संग्रह की रचनाओं में विसंगतियों की पहचान और प्रहार करने की भरपूर कोशिश करते दिखाई देते हैं और अपवादस्वरूप कुछ अवसरों को छोड़ दिया जाए तो प्राय: उनकी दृष्टि और विषय चयन ठीक हैं। इस संग्रह की अधिकांश रचनाओं में हमें वर्तमान समाज और उसकी विसंगतियां झाँकती हुई दिखाई देंगी।” व्यंग्य एक ऐसी विधा है, जो छोटी-छोटी घटनाओं पर कटाक्ष कर पाठक के मन के किसी कोने को प्रभावित करती है। घटनाएं भले ही छोटी हो, मगर उनके भीतर एक खास उद्देश्य छुपा हुआ होता है। समाज के किसी भी परिप्रेक्ष्य में घटनाएं चाहें, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक सामाजिक या व्यावहारिक पहलुओं को आधार व्यंग्यात्मक रूप से बनाकर लिखी गई हों, अवश्य पढ़ते समय पाठकों के मन में गुदगुदी पैदा होती है, उसका कारण होता है उन शब्दो
साहित्य, संस्कृति एवं सिनेमा की वैचारिकी का वेब-पोर्टल