प्रेमचंद जी की 144वीं जयंती के अवसर पर दिनांक- 31.07.2024, को त्रिवेणी देवी भालोटिया कॉलेज, रानीगंज हिन्दी विभाग एवं IQAC के संयुक्त तत्वाधान में एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी (प्रेमचंद का भारत) का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत सर्वप्रथम मुंशी प्रेमचंद और कवि गुरू रवीन्द्रनाथ टैगोर जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ हुआ। संगोष्ठी का आरंभ अतिथियों द्वारा द्वीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत में छठे सेमेस्टर की छात्रा खुशी मिश्रा ने 'वर दे वीणा वादिनी' वन्दना का गायन किया। तत्पश्चात बीए (ऑनर्स) प्रथम सेमेस्टर के छात्रों ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आये प्रोफेसर आशुतोष पार्थेश्वर और विशिष्ट वक्ता के रूप में डॉ. साबेरा खातून उपस्थिति रहीं। इस कार्यक्रम में कॉलेज के TIC प्रोफेसर मोबिनुल इस्लाम, TCS अनूप भट्टाचार्य और IQAC कॉर्डिनेटर डॉ. सर्वानी बनर्जी ने कथाकार प्रेमचंद के संदर्भ में अपने-अपने विचार रखें। इस संगोष्ठी की अध्यक्षता हिंदी विभाग की डॉ. मंजुला शर्मा ने किया।
प्रथम सत्र का आरम्भ अपराह्ण 12:30 बजे से हुआ। विशिष्ट वक्ता के रूप में त्रिवेणीदेवी भालोटिया कॉलेज, उर्दू विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. साबेरा खातून ने प्रेमचंद के हवाले से अपनी बात रखते हुये कहा कि 'प्रेमचंद हमारी साझी विरासत का हिस्सा हैं। उन्होंने सबसे पहले उर्दू में लिखना शुरू किया बाद में हिंदी और उर्दू दोनों ही में लिखते रहें। उनके अफ़साने और उपन्यासों में वतन की मुहब्बत का जज्बा नज़र आता है।' उन्होंने आगे कहा कि- 'प्रेमचंद के यहाँ गरीब, मजदूर, किसान, दलितों और औरतों को ख़ास जगह दी गई है। उन्होंने कमजोरों को जुबान दी है उन्हें बोलना सिखाया, जुल्म के खिलाफ़ आवाज़ बुलंद करने के तरकीब बताये। उन्होंने विधवाओं की दूसरी शादी पर जोर दिया और खुद भी ऐसी ही शादी किये। प्रेमचंद एक सच्चे देश भक्त, निडर इंसान और एक महान कहानीकार थे।' दूसरे तकनीकी सत्र का आरम्भ अपराह्ण 1:00 बजे से हुआ। इस दूसरे सत्र में हिंदी विभाग के सहयोगी आचार्य डॉ. गणेश रजक ने हिंदी विभाग और त्रिवेणीदेवी भालोटिया कॉलेज में प्रेमचंद की प्रतिमा के संदर्भ में तथा कॉलेज की गतिविधियों पर अपनी बात रखी।
इसके बाद कॉलेज के विद्यार्थियों ने स्वरचित कविता का पाठ भी किया। जिसमें आरती कुमारी साव, अमन हेला, आशिया परवीन, ज्योति राम, सरोजिनी साव, प्रियंका महतो, निर्मल कुमार ठाकुर एवं अंजली कुमारी दास ने सुंदर प्रस्तुति दी। इस संगोष्ठी में चयनित शोध पत्रों का वाचन भी किया गया। उर्दू विभाग से आयी डॉ. महजबीन ने 'प्रेमचंद के अफ़सानों में हिन्दुस्तानी औरत' विषय पर, डॉ. मो. शमशेर आलम ने 'भारत का सच्चा कहानीकार : प्रेमचंद' विषय पर, हिंदी विभाग की डॉ. मीना कुमारी, 'प्रेमचंद के स्त्री पात्र' विषय पर, खांद्रा कॉलेज से प्रीति सिंह ने 'प्रेमचंद की कहानियों में स्त्री-मनोविज्ञान' विषय पर, इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ से चांद शेख ने 'प्रेमचंद के किसान' विषय पर शोध-पत्र प्रस्तुत किए। पी.जी के छात्रों में रोशनी रजक ने 'प्रेमचंद के साहित्य में कृषक जीवन' विषय पर, उर्मिला कुमारी ने 'मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों में नारी समस्या का यथार्थ चित्रण' विषय पर और स्वाति मिश्रा ने 'प्रेमचंद की दृष्टि में जाति के प्रश्न : दलित विमर्श के आलोक पर' विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत किये।
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का विषय था ‘प्रेमचंद का भारत’, संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रोफेसर आशुतोष पार्थेश्वर ने अपने बहुमूल्य वक्तव्य में कहा कि- 'प्रेमचन्द हिन्दी-उर्दू भाषा के शीर्ष-स्थानीय लेखक हैं। उनका लेखन एक बेहतर मनुष्य और बेहतर दुनिया बनाने की रचनात्मक कोशिश है। वे भारतीय नवजागरण और स्वतंत्रता आन्दोलन के सबसे विश्वसनीय लेखक हैं। भारतीय समाज की हजारों वर्षों की गतानुगतिकता, जातिप्रथा की अमानवीयता, धार्मिक वैमनस्य और साम्प्रदायिकता, गरीबी और बेगारी, स्त्रियों की दोयम स्थिति जैसे अनेक मुद्दे, जिनसे उस दौर के संघर्ष का चेहरा बनता है और जो आज भी मौजूद हैं, प्रेमचन्द उनसे टकराते हैं और वैकल्पिक समाज की तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। कहना जरूरी है कि जिन सवालों से प्रेमचन्द टकराते हैं, वे केवल भारत के लिए नहीं, दुनिया के किसी भी खित्ते के लिए उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं। प्रेमचन्द के लिए भारत का अर्थ भारत की जनता से था। उनके लिए देश, अत्यन्त संवेदनशील, विस्तृत और समावेशी इकाई है। और, केवल देश ही नहीं, वे वृहत्तर मनुष्य समाज के लिए भी ऐसा ही सपना देखते थे।'
मुख्य वक्ता के वक्तव्य के बाद विद्यार्थियों और शोधार्थियों के द्वारा कई प्रश्न किये गए, जिसका उत्तर मुख्य वक्ता ने दिया। यह सेशन काफी महत्वपूर्ण एवं ज्ञानवर्धक रहा। इस अवसर पर त्रिवेणी देवी भालोटिया, कॉलेज के प्रेसिडेंट, जी.वी श्री तापस बनर्जी महोदय उपस्थित रहे। उन्होंने इस अवसर पर अपने वक्तव्य में कहा कि- 'प्रेमचंद आज भी प्रासंगिक हैं', उन्होंने गोदान का जिक्र करते हुए कृषक जीवन के संघर्ष को बताया। इस कार्यक्रम के प्रथम सत्र का संचालन हिंदी विभाग की डॉ. किरण लता दुबे तथा दूसरे सत्र का संचालन डॉ. जयराम कुमार पासवान (पी.जी. समन्वयक) ने किया। धन्यवाद ज्ञापन विभाग के सहयोगी डॉ. वसीम आलम (यूजी समन्वयक) ने किया।
इस अवसर पर हिंदी विभाग से डॉ. आलम शेख, रीना तिवारी, श्री नवीनचंद सिंह, साहित्य आस्था के संचालक श्री मनोहरलाल पटेल, साहित्य आस्था के संरक्षक व समाजसेवी, श्री मनोज यादव, श्री सिन्टू भुईया, बांग्ला विभाग से प्रो. सोम्पा गुप्ता, डॉ. राजश्री बोस, राणा भट्टाचार्य, संस्कृत विभाग से डॉ. दीपोश्री मंडल, अंग्रेजी विभाग से अरुणिमा कर्मकार, शुमबुल नसीम, ऊर्दू विभाग से डॉ. सफक्त कमाल, वाणिज्य विभाग से अभिजित चट्टोपाध्याय, कैमिस्ट्री विभाग से डॉ. संचारी पाल, भूगोल विभाग से दीपांकर उरांव, सहित बड़ी संख्या में छात्र और शोधार्थी उपस्थित रहें।
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