पूनम को आज
खुशियों का ठिकाना नहीं है, वह आज इतना खुश है कि
अपनी खुशी को कभी गुन-गुना कर तो कभी आईने में अपने ही चेहरे को देख कर बोलती है-“तो आज तुम्हारी मातृत्व पूर्ण हुई” और हंस कर शर्मा
कर अपने मुख को अंचल से ढँक लेती है । इस खुशी को बताने के लिए अपने पति का बेचैनी
से इंतजार कर रही है । पर घड़ी की सुइयां है कि आगे बढ़ाने का नाम ही नहीं ले रही है
। मन में ही सोचती है ‘क्या करूँ फोन करके अशोक को बता दूँ,
नहीं इतनी बड़ी खुशी फोन पर नहीं बताऊँगी । क्यों न उनके आने का
इंतजार ही करूँ ।” यही सोचते–सोचते
पूनम को झपकी आ जाती है । सपने में देखती है कि एक सुंदर गोल –मटोल बच्चा बाहों को फैलाए माँ- माँ करता हुआ उसकी तरफ दौड़ता आ रहा है ।
पूनम उसे बाहों में उठाकर फूलो नहीं समा रही है । तभी कॉलिंग बेल की घंटी गनगना
उठती है । एक बार....दो बार......तीन बार...जब पूनम की नींद नहीं खुलती है तो अशोक
दरवाजे को धक्का देना शुरू करता है जब ज़ोर कि आवाज हुई तो पूनम नींद से एकाएका
उठती है और दरवाजे के होल से बाहर देखती है बाहर परेशानियों से भरा अशोक पसीने से
लथपथ नजर आता है । पूनम झट से दरवाजा खोला देती है । दरवाजा खुलते ही अशोक अंदर
आता है और गुस्से में कहता हैं _ क्या कर रही थी इतनी देर से
अंदर ? मैं कब से कॉलिंग बेल बजा रहा हूँ । पूनम बोली- मुझे
थोड़ी झपकी आ गई थी ।
“ठीक है
थोड़ा पानी लाओ” । पूनम ठीक है बोलकर किचन के तरफ भागी।
“ये लीजिए
ठंडा पानी” ।
(अशोक पानी पीने
के बाद) “आज बहुत गर्मी है साथ ही ट्रैफिक भी ज्यादा है” ।
पूनम झट से बाहों
का हार अशोक के गले में डालते हुए नजरें तिरछी करके कहती है –
“आज मैं आपको एक खुशखबरी
दूँगी” ।
“कैसी
खुशखबरी” ?
“आप गेस
कीजिए” ?
“ओह बोलो
भी” !
पूनम की आँखें
झुक जाती है, शर्म से चेहरा लाल हो जाता है उसके
मुख से धीमी आवाज निकलती है – “मैं..........मैं माँ बनने वाली हूँ” ।
सुनते ही अशोक की
परेशानियों से भरे चेहरे पर खुशियों की लकीर दौड़ जाती है
“सच्च”..?
“हाँ ,सच” ।
मानो दोनों को
वर्षों की तपस्या का फल मिला गया हो ।
खुश होने की वजह
भी क्यों ना हो ? पूनम शादी के नौ वर्षों
के बाद माँ बन रही है । इसके लिए न जाने अशोक और पूनम ने एक से बढ़ाकर एक डॉक्टर को
दिखाया ,मंदिर महजिद में मन्नतें मांगी, साधू-सन्यासियों की सेवा की , कहाँ – कहाँ नहीं खाक छाना । अशोक की इच्छा थी कि पूनम माँ बनें और उसका आँगन
खुशियों से झूम उठे । आज यह समाचार सच में अशोक को ताप में शीतलता का अनुभव है ।
अशोक को खुशियों
का ठिकाना नहीं रहा ,वह खुशी से पूनम को बाहों
में भर लेता है- “पूनम आज तुमने मेरे जीने के मायने बादल दिए,
आज मेरी इच्छा पूरी हुई, आज मैं बहुत खुश हूँ”
।
“मैं भी
अशोक ...न जाने कितनी रातों को बिन सोये ही बिताई थी इस आश में कि कब मेरे आँगन
में भी एक फूल खिले और भगवान ने हमारी सुन ली” ।- दोनों
भावोत्सल हो उठे ,दोनों के आँखों में खुशी के आँसू आ गए ।
(2)
अशोक और पूनम को
खुशी से रात को नींद नहीं आई । बातें करते-करते रात आँखों में ही कट गई । बच्चे के
भविष्य की चिंता, उसकी देख-रेख, पालन –पोषण, शिक्षा जैसी कई
मुद्दे पर दोनों की बात हुई । सुबह दोनों थके – मादे,
अलसाए होने के बावजूद फिर से बच्चे के बारे में बात शुरू हुई । अशोक
,पूनम से कहता है- “माँ और बाउजी को यह
खुशखबरी देना होगा”।
“जरूर देना अशोक, माँ और बाउजी भी इसी आशा में बैठे दिन गिन रहे हैं । क्यों ना उसे हम गाँव
से यहाँ बुला लें” ।
“हाँ पूनम ....माँ-बाउजी के बिना
यह घर कितना खाली-खाली लगता है पर तुम तो जानती ही माँ को, वो
कभी भी किसी एक बेटे के यहाँ टीक नहीं सकती है । कभी मेरे पास तो कभी छोटे राकेश
के पास , यहाँ इतना सुख –सुविधा होने
के बावजूद भी वो गाँव में जाकर टिक जाते हैं” ।
“पर अशोक,
इस बार मैं उसकी एक जिद्द भी नहीं मानूँगी .....उन्हें किसी तरह
यहाँ बुलाओ “मैं अपनी खुशियाँ उनलोगों से बांटना चाहती हूँ ।”
“हाँ,
पूनम ....उनके बिना घर बिलकुल खाली लगता है” ।
“तो
माँ-बाउजी को बुला लो ना यहाँ ,मेरे प्रेगनन्सी की खबर सुनते
ही दौड़े चले आएंगे” ।
“अब कितनी
बार बताऊँ, तुमको तो पता ही है उनलोगों को शहर से ज्यादा
गाँव ही पसंद है …. तुम तो देखती ही हो यहाँ आने के दो-तीन
दिन बाद ही बोर हो जाते है और गाँव जाने की जिद करने लगते हैं और कहते हैं –
ओह ! हर जगह भीड़ ही भीड़ ,कहीं सांस लेने तक की
जगह नहीं, हर तफ़र चीं-चीं पों-पों की आवाज कान के पर्दे
फाड़ने को आमादा रहते हैं। उन्हें यहाँ का परिवेश ठीक नहीं लगता और तुम तो जानती ही
हो जहां बाउजी होंगे ,वहीं माँ भी होगी” ।
“हाँ,
सो तो है”
“तब बताओ
क्या करें” ?
“क्या
करोगे.......पहले माँ-बाउजी को इस बात की सूचना तो दो ...मुझे लगता है इस बात को
सुन कर वे दौड़े चले आएंगे” ।
“तुम्हारी
बात ही ठीक है काश ऐसा ही हो” ।
फोटो : गूगल से साभार |
(3)
अशोक अपने माँ-बाउजी
को पूनम के माँ बनाने की सूचना देता है । इस बात की जानकारी मिलते ही अशोक के पिता
रामेश्वर प्रसाद और माँ फूल देवी फुले नहीं समाती । उसके माता-पिता सारी
परेशानियों को भूलकर अगले दो दिनों के भीतर ही तड़के सुबह अशोक के घर पहुँच जाते
हैं ।
सुबह के छ: बजे होगे,
सूर्य अपनी लालिमा बिखेर कर धरती को प्रकाशित कर चुकीं थी, पक्षियाँ अपने दिनचर्या के लिए घोंसलें छोड़ चुकी थी, सुबह की ठंडी हवा अभी भी मादकता और आलस्य लिए हुए थी ...तभी अशोक के घर की
कॉलिंग बेल गूंज उठती है...एक बार ...दो बार...तीन बार....पूनम अलसाई हुई आँखों को
मिचती हुई अशोक से कहती है- अशोक...अशोक...देखो ना इतनी सुबह कौन आया है
...ऊँह..... ऊँह.... उठता हूँ , तंद्रा में ही अरे इतनी सुबह
–सुबह कौन आ गया .....एक बार और रिंग बजता है .....आता हूँ
कहते हुए अशोक तेजी से दरवाजे की ओर भागता है । दरवाजा खुला तो आँखें खुली की खुली
ही रह गई ...देव-देवी की साक्षात मूर्ति उसके सामने खड़े हैं । अशोक झट से
माँ-बाउजी के पैर छूए और समान उठाते हुए अंदर आते ही आवाज लगाया “पूनम देखो तो कौन आया है”
! पूनम माँ-बाउजी को देखते ही सिर पर आंचल रखते हुए उनके पैर छूती
है । माँ और बाउजी एक साथ आशीर्वाद देते हैं – “दुधो नहाओ
पूतो फलो” ।
पूनम के खुशियों
का ठिकाना नहीं , मन बहुत हुलसित है
क्योंकि माँ और बाउजी उनके साथ है ।उन दोनों के सेवा टहल में कोई कमी नहीं उठा रखी
है । अशोक भी पूनम की इस सेवा भाव से खुश है । दिन भर माँ-बाउजी से बात करते करते
कट गया । दोपहर के खाने पीने और आराम के बाद जब माँ-बाउजी शाम को उठते है तो पूनम
चाय की प्याला लिए उनके पास जाती है ।
पूनम को देखती ही
माँ कहती है – “आओ बेटी, मेरे
पास बैठो” ।
पूनम चाय का
प्याला देकर उनके पास बैठ जाती है ।
माँ- “बताओ बेटी तुम्हारी तबीयत कैसी है” ।
“ठीक है माँ” ।
“कितने महीने का है”
?
“यही डेढ़ महीने का”
“डॉक्टर को दिखाई हो ना”
?
“हाँ,
माँ”
“क्या कहे,
डॉक्टर साहब” ?
“कुछ दवाइयाँ दिए है, कहा है कि ज्यादा
काम मत करना ,किसी भी बात से तनावमुक्त रहना और दवाइयाँ
नियमित रूप से लेती रहना” ।
“अरे! ये
सब तो ठीक है पर ये नहीं बताया कि लड़का होगा की लड़की” ?
पूनम विस्मय भरी
नजरों से उनके तरफ देखती हुई कहती है – “माँ ,
डॉक्टर ने ऐसा कुछ भी नहीं बताया” ।
“क्या
!.......लगता है कि तुम डॉक्टर सा`ब से ठीक से पुछी ही नहीं”
।
“हाँ ,
मैंने इस विषय में उनसे कुछ भी नहीं पुछी” ।
“क्यों
नहीं पुछी” ?
“क्या
करुँगी माँ... पूछकर ! जो भी होगा मेरे लिए ठीक है । लड़का हो या लड़की मैं किसी में
अंतर नहीं समझती । आज समाज में दोनों का समान अधिकार है”।
“नहीं....
मुझे तो लड़का ही चाहिए ...लड़की नहीं” ।
“क्यों”
?
“क्योंकि
लड़का वंश को आगे ले जाता है, ढलती उम्र में लड़का ही एक मात्र
सहारा होता है, लड़की बड़ी हुई नहीं कि शादी कर तो ...और फट से
वो पराया धन हो जाती है । लड़कियां तो सदियों से पराया धन रहा है फिर वो हमारे लिए
किस काम की” ।
पूनम बिना किसी
उत्तर दिए निराशा भाव से उठकर रसोईघर की ओर चल देती है । आज उसे रसोई घर में मन
नहीं लगा रहा है खोई खोई सी है । वह अशोक के आने का इंतजार करती है । तभी बाउजी की
आवाज आती है....पूनम बेटा मेरे लिए चाय लाना ...इस आवाज से एकाएक उसकी सोच भंग
होती है ...अभी लाई, कहकर चाय गरम करने में
व्यस्त हो जाती है ।
अशोक बाहर से आते
ही बाउजी के पास बैठ जाता है पूनम भी चाय लेकर आ जाती है । बाउजी भी उसे पास में
बैठने का इशारा करते हैं ।
बाउजी- “पूनम बेटा तुम अपनी शरीर का ध्यान ठीक से रखा करो ...काफी दुबली पतली हो
गई हो ( अशोक के तरफ मुखातिब होते हुए ) अशोक बेटा तुम मेरी बहू के लिए खाने का
अच्छा से अच्छा ,उम्दा किस्म का सेव, अंगूर,
मेवे रोज लाया करो । ताजा फल सेहत के लिए ठीक रहता है ,आखिर मेरी बहू वंश को आगे बढ़ाने के लिए लड़का देने वाली है” ।
अशोक –
“जी, बाउजी” ।
पूनम तो पहले से
ही चिंतित थी माँ के विचारों से अब बाउजी की भी यही मर्जी । पूनम मन ही मन सहम सी
गई है,
सोचने लगी अगर अशोक का भी मन ऐसा ही हुआ तो .......वह बहुत चिंतित
रहने लगी की कहीं लड़की हुई तो घर वाले पता नहीं मेरा या बच्चे को क्या करेंगे ।
इसी उधेड़बुन में खाना –पीना करते रात के दस बज गए । जब पूनम
सोने के लिए बिस्तर पर जाती है तो अशोक उसे देखते ही बोलता है –“क्या हुआ तुम इतनी उदास क्यों हो ? तुम्हारे चेहरे
की रौनक की जगह झुर्रियां कहाँ से आ गई ,सुबह तो बहुत खुश थी
और रात होते ही उदास, बताओ न क्या हुआ” ?
पूनम –“कुछ नहीं, बस काम ज्यादा होने की वजह से थोड़ा परेशान
हूँ” ।
“नहीं,
मैं जनता हूँ तुम काम से कभी नहीं घबराती हो ....जरूर कोई बात है
बताओ ना”।
“क्या
बताऊ, मुझे बहुत डर लग रहा है” ।
“किस बात
के लिए” ?
“माँ-बाउजी
के बातों से स्पष्ट समझ आ रहा है कि उन्हें वंश बढ़ाने के लिए लड़का चाहिए” ।
“तो ...
इसमें उदास होने कि क्या बात है” ।
“क्यों न
होऊँ उदास ...अगर लड़की हुई तो” ?
“नहीं,
लड़का ही होगा” ।
“तुम्हें
कैसे पता” ?
“मुझे
पूरा विश्वास है” ।
“अशोक,
तुम अपने पर इतना विश्वास मत करो...भगवान पर विश्वास करो, वो जो देंगे उसी में खुश रहना सीखो ,जबर्दस्ती अपनी
मांग पर मत अड़ो” ।
“तो ठीक
है, हम कल ही डॉक्टर के पास जाएंगे, पता करने के लिए गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है या
लड़की” ।
“पर यह
जानना कानूनी अपराध है कोई भी डॉक्टर ऐसा नहीं कर सकता” ।
“पैसा,
बोलती जहाँ बंद करता है वहीं बहुत कुछ बता भी देता है” ।
“अच्छा
ठीक है, मानो डॉक्टर ने कह भी दिया कि गर्भ में पल रहा बच्चा
लड़की है तो तुम क्या करोगे ।
अगर लड़की हुई तो ?..............अबॉरशन” ।
“क्या?
तुम पागल तो नहीं हो गए” ?
अबॉरशन...... ...अबॉरशन........अबॉरशन ......यह
शब्द जैसे पूनम के दिमाग में चक्कर कि तरह घूमने लगी और वो बेहोश होकर धम्म से
बिस्तर पर गिर गई । अगले सुबह जब होश आया तो देखती है कि अशोक,
माँ ,बाउजी और डॉक्टर साहब चारों उसके सिहरने खड़े हैं ।
माँ पुछती है –
“अभी जी कैसा है ? पूनम –ठीक है” ।
बाउजी–“तुम्हें क्या हुआ जो कल रात से तुम बेहोश हो” ?
इस बात को सुनते
ही पूनम के आँखों में आंसुओं की धार बह गई ,वो अशोक
की तरफ देखने लगी और अशोक अपराधी की भांति उसके सामने खड़ा है । “क्या हुआ पूनम कुछ बोलक्यों नहीं रही हो” ...पूनम के
आँखों से लगातार आंसुओं की धार बह रही है .....तभी अचानक पूनम का कोमल चेहरा रौद्र
रूप धरण कर लेता है वह ज़ोर ज़ोर से
चिल्लाते हुए बोलती है –“ जिस मातृत्व सुख को पाने के लिए
मैं नौ वर्षों से इंतजार कर रही हूँ सिर्फ लड़की के लिए इस सुख से पुनः वंचित हो
जाऊँ...नहीं मैं ऐसा कभी भी नहीं होने दूँगी । चाहे लड़का हो या लड़की मैं इस बच्चे
को जन्म दूँगी इसले लिए मुझे रणचंडी भी बनाना पड़े तो मैं बनूँगी ..... संसार के
चाहे मेरे अपने भी अगर इसका विरोध करेंगे तो भी डरूँगी नहीं । तुम्हें इस धरती पर
आने का पूरा अधिकार है, तुमसे यह अधिकार कोई भी नहीं छिन
सकता...कोई भी नहीं ....कोई भी नहीं .....मैं भी नहीं ।”
पूनम के इस रौद्र
रूप को देखकर घर के सारे लोग डर जाते हैं।
और दुबारा घर में किसी को भी लड़का या लड़की की बात करने की हिम्मत नहीं होती
है ।
संपर्क : अजय
कुमार चौधरी, सहायक प्राध्यापक, हिन्दी विभाग, पी0 एन0 दास कॉलेज,पलता, शांतिनगर, बंगाल एनामेल ,उत्तर 24 परगना ,पश्चिम बंगाल ajaychoudharyac@gmail.com
*कहानी, परिवर्तन, अंक 2 अप्रैल-जून 2016 में प्रकाशित
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