हिंदी फ़िल्म संगीत का इतिहास केवल मनोरंजन की कथा नहीं, बल्कि भारतीय समाज के अंतःसंसार का जीवंत दस्तावेज़ भी है। इस इतिहास में कुछ गीतकार ऐसे हुए जिन्होंने प्रेम, विरह और सौंदर्य के पार जाकर मनुष्य, व्यवस्था और सत्ता से प्रश्न किए। इन्हीं में सबसे तेजस्वी नाम है साहिर लुधियानवी। उनके फ़िल्मी गीत केवल धुनों के साथ बँधी भावनाएँ नहीं, बल्कि प्रगतिशील चेतना के घोष-पत्र हैं। उन्होंने सिनेमा के लोकप्रिय माध्यम को सामाजिक आलोचना की धार प्रदान की और शोषण, युद्ध, वर्गभेद, स्त्री-पीड़ा और मानवीय गरिमा जैसे विषयों को गीतों के केंद्र में रखा। चित्र : गूगल से साभार साहिर लुधियानवी का साहित्यिक संस्कार प्रगतिशील लेखक संघ की विचारधारा से गहराई से जुड़ा हुआ था। उर्दू शायरी की परंपरा में पले-बढ़े साहिर ने रोमैंटिक भाषा को सामाजिक यथार्थ से जोड़ा। उनके लिए कविता सत्ता-प्रतिष्ठानों की शोभा बढ़ाने का साधन नहीं, बल्कि अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने का शस्त्र थी।लाहौर में साहिर ने ‘अदब-ए-लतीफ’, ‘शाहकार’ और ‘सवेरा’ जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया, लेकिन प्रगतिशील विचारों के कारण पाकिस्ता...
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