रिपोर्ट : डॉ. रवीन्द्र पीएस
भलुआ | देवरिया
दिनांक 28 दिसंबर 2025 को ग्राम भलुआ, जनपद देवरिया, उत्तर प्रदेश में 'स्व. विंध्याचल सिंह स्मारक न्यास द्वारा संचालित 'ग्रामीण पुस्तकालय' के स्थापना दिवस पर सम्मान समारोह, परिचर्चा और कविता पाठ का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम के शुभारंभ में अतिथियों को असमिया गमछा और भारतीय संविधान की प्रस्तावना भेंट कर स्वागत किया गया। ग्रामीण पुस्तकालय के उदेश्य और इसकी संकल्पना को साकार करने की यात्रा पर प्रकाश डालते हुए न्यास के अध्यक्ष, परिवर्तन पत्रिका के सम्पादक एवं शिक्षक डॉ. महेश सिंह ने बताया कि मेरे जीवन में पुस्तकालयों ने क्रान्तिकारी भूमिका निभाई है। मैं इंटरमीडियट की पढ़ाई करने के बाद रोजी-रोटी की तलाश में गोवा गया था। वहीं गोवा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में एसी का काम करने के दौरान पढ़ने के प्रति मेरी जिज्ञासा बढ़ी, फलस्वरुप मैंने आगे के वर्षों में परास्नातक और पीएचडी की उपाधि हासिल की। आज झारखण्ड राज्य में शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहा हूँ। अपने अनुभवों, कठिनाइयों और संघर्षों को ध्यान में रखते हुए यह विचार आया कि पुस्तक और प्रेरणा के अभाव में कोई भी पढ़ाई से वंचित न होने पाए। इसीलिए अपने गाँव, क्षेत्रवासियों और मित्रों के सहयोग से इस पुस्तकालय को मूर्त रूप दे सका। इसका उद्देश्य मात्र पुस्तकें उपलब्ध करवाना नहीं वरन एक ऐसा मंच प्रदान करना है जो हमारी तार्किक और वैज्ञानिक सोच का विस्तार करे और हमारी वैचारिकी को एक आकर दे सके। इसी क्रम में हम समय-समय पर विभिन्न वैचारिक कार्यक्रम आयोजित करते रहते हैं और शिक्षा के क्षेत्र में विशिष्ट उपलब्धि हासिल करने वाले युवाओं एवं जन पक्षधर वैचारिकी के संवाहक रचनाकारों को सम्मानित भी करते हैं।
तदुपरान्त कार्यक्रम में पधारे अतिथिओं का परिचय देते हुए, उनके साहित्यिक योगदान पर संचालक डॉ. रवीन्द्र पीएस ने प्रकाश डाला। पुन: डॉ. महेश सिंह ने न्यास द्वारा प्रति वर्ष दिए जाने वाले तीनों सम्मानों- 'रामदेव सिंह 'कलाधर' साहित्य सम्मान', 'बोधिसत्व लोक-कला एवं संस्कृति सम्मान' तथा 'प्रेमचंद श्रीवास्तव स्मृति सम्मान' के बारें में बताया। उन्होंने कहा कि रामदेव सिंह 'कलाधर' राष्ट्रीय चेतना, लोक संस्कृति एवं बाल साहित्य के स्थापित रचनाकार रहे हैं। इसका प्रमाण न केवल उनकी प्रकाशित-अप्रकाशित पाण्डुलिपियों से मिलता है, बल्कि उनके समकालीन राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही' आदि से हुए पत्राचार से भी मिलता है।
यह भूमि तथागत बुद्ध के कार्यस्थल का केंद्रीय क्षेत्र रही है और इसी रूप में इसकी वैश्विक पहचान है, इसलिए हम गोरखपुर मंडल स्तर का 'बोधिसत्व लोक-कला एवं संस्कृति सम्मान' देते हैं। भलुआ गाँव के ही गाँव-गवईं जीवन, सामाजिक रूढ़ि खंडन और किसान के प्रति अत्यधिक संवेदनशील कवि रहे प्रेमचंद श्रीवास्तव की स्मृति में जनपद देवरिया के उदीयमान कवि को 'प्रेमचंद श्रीवास्तव स्मृति सम्मान' प्रदान करते हैं।
मंच की ओर से वर्ष 2025 का 'रामदेव सिंह 'कलाधर' साहित्य सम्मान' के लिये शोधार्थी एवं लेखक, चर्च क्राइस्ट महाविद्यालय कानपुर के सहायक प्रोफेसर डॉ. रमाशंकर सिंह, 'बोधिसत्व लोक-कला एवं संस्कृति सम्मान' के लिये लेखक, रंगकर्मी और पुरातत्त्वविद डॉ. रमाकांत कुशवाहा 'कुशाग्र' तथा 'प्रेमचंद श्रीवास्तव स्मृति सम्मान के लिये देवरिया जनपद के उदीयमान कवि सच्चिदानंद पाण्डेय के नामों की घोषणा की गई।
कार्यक्रम संचालक डॉ. रवीन्द्र पीएस ने इन तीनों रचनाकारों के योगदान पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने डॉ. रामशंकर सिंह के बांस पर आश्रित जातियों, घुमन्तु एवं विमुक्त समुदायों के इतिहास, संस्कृति, राजनीति और जीवन बोध पर लेखन कार्य तथा इनके चर्चित शोध ग्रन्थ 'नदी पुत्र' का विशेष उल्लेख किया। डॉ. रामाकांत कुशवाहा की बुद्ध सम्बंधी पुस्तकों यथा; बुद्ध के वंशज, बुद्ध और सम्राट अशोक, खत्तिय जातियाँ एवं बौद्ध स्थलों की पुरातत्व विभाग की सहायता से पहचान और संरक्षण के उनके विशेष प्रयास पर चर्चा किया।
तत्पश्चात प्रो. असीम सत्यदेव, प्रो. अनिल राय एवं किसान नेता शिवाजी राय ने डॉ. रमाशंकर सिंह को 'रामदेव सिंह 'कलाधर' साहित्य सम्मान' का सम्मान पत्र, अंगवस्त्र, स्मृति चिह्न एवं सम्मान राशि (₹5100) देकर अलंकृत किया। डॉ. रमाकांत कुशवाहा 'कुशाग्र' को 'बोधिसत्व लोक-कला एवं संस्कृति सम्मान' से प्रो. असीम सत्यदेव, साहित्यकर्मी जय प्रकाश मल्ल, वरिष्ठ पत्रकार मनोज सिंह ने सम्मान पत्र, अंगवस्त्र, स्मृति चिह्न एवं सम्मान राशि (₹2100) एवं कवि सच्चिदानंद पाण्डेय को 'प्रेमचंद श्रीवास्तव स्मृति सम्मान' प्रो. असीम सत्यदेव, डॉ. राम नरेश राम, डॉ. विश्वम्भर नाथ प्रजापति ने सम्मान पत्र, अंगवस्त्र, स्मृति चिह्न एवं सम्मान राशि (₹1100) प्रदान कर सम्मानित किया।
इस अवसर पर डॉ. रमाशंकर सिंह ने न्यास के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह सुखद है कि हासिये पर डाले गये लोगों पर चुपचाप कार्य करने वालों पर भी साहित्य समीक्षकों की दृष्टि है। प्राय: यह देखा गया है कि वंचित समाज का कोई भी व्यक्ति जब पद, धन और प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेता है तो अपने समाज से मुँह मोड़ लेता है। आप सभी मेरे लिये कामना कीजियेगा कि मैं कभी पथविचलित न होऊँ और जनपक्षधर साहित्य सृजन कर परिधि पर पड़े लोगों की आवाज बना रहूं। यह सम्मान मुझे जनपक्षधर लेखन के उत्तरदायित्व का बोध कराता रहेगा।
डॉ. रमाकांत कुशवाहा ने अपने उद्बोधन में कहा कि बुद्ध के नाम से सम्मान की परम्परा सुखद अनुभूति कराती है। यह धरती बुद्ध की है, यहाँ भाषाई और पुरातात्विक आधार पर गंभीर शोध और उत्खनन तमाम प्रचलित मान्यताओं से इतर नई पहचान और दृष्टि दे सकती है। यह सम्मान मेरे लिये प्रेरणा है कि मैं अपने बौद्ध साहित्य और इतिहास पर जारी शोध की गंभीरता को बरकरार रखूँ। वर्तमान समय में बुद्ध और बौद्ध साहित्य में शोधार्थियों की रूचि और जिज्ञासा में वृद्धि नये-नये दृष्टिकोण को जन्म दे रही है।
कवि सच्चिदानंद पाण्डेय ने इस सम्मान के लिये न्यास का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि नये रचनाकारों के लिये सम्मान और मंच दुर्लभ होते हैं। न्यास ने ग्रामीण पुस्तकालय के माध्यम से हमें एक स्थाई मंच प्रदान किया है, जो नये रचनाकारों के लिए उर्वर भूमि तैयार करेगा। इस अवसर पर भलुआ ग्राम सभा के दो मेधावी विद्यार्थियों आयुष कुमार मल्ल एवं ज्योति विश्वकर्मा को भी सम्मानित किया गया।
*परिचर्चा सत्र : 'डिजिटल माध्यम : साहित्य के समक्ष चुनौती एवं अवसर'*
परिचर्चा को प्रारम्भ करते हुए जनवादी लेखक संघ, गोरखपुर के अध्यक्ष जय प्रकाश मल्ल
ने कहा कि डिजिटल माध्यम ने हमारी पहुंच में विस्तार किया है। एक सतर्क अध्येता को पुस्तकों और डिजिटल प्लेटफॉर्म को परस्पर पूरक के रूप में देखना चाहिए।
किसान नेता एवं ग्रामीण पुस्तकालय नेटवर्क से जुड़े शिवाजी राय ने कहा कि एक व्यक्ति नागरिक बोध के अभाव में सही संघर्ष के बिंदुओं की पहचान नहीं कर पाता ऐसे में लोकतान्त्रिक संस्थाएँ भी व्यापक रूप से प्रभावकारी सिद्ध नहीं हो पाती। पुस्तकें इतिहास-संस्कृति की समझ को विकसित करती हैं और लोकतान्त्रिक मूल्यों का संवहन करने योग्य बनाती हैं। डिजिटल आंधी के युग में भी ग्रामीण पुस्तकालय की श्रृंखला को इसी रूप में देखा जाना समीचिन होगा।
वरिष्ठ पत्रकार अशोक चौधरी ने कहा कि डिजिटल माध्यम हमें अपार सूचनाओं तक पहुंचा तो रहा है परन्तु इस पर अत्यधिक निर्भरता मानव मनोविज्ञान पर नकरात्मक प्रभाव डाल रही है। व्यापक पैमाने पर लोग स्मृतिदोष, अत्यधिक उत्तेजना और अधीरता के शिकार हो रहे हैं। हमारी एक अंगुली पर सूचनाएं उपलब्ध हो तो रही हैं परन्तु उसके उचितानुचित के निर्धारण का कोई पैमाना नहीं है और सेंशरशिप का अभाव नैतिक संकट उत्पन्न कर रहा है। यह माध्यम किताबों की तरह विविध स्तरीय कसौटी से नहीं गुजरता इसलिए डिजिटल माध्यम प्रामाणिकता, नैतिकता और सामाजिक मूल्यों के संवहन में पुस्तकों का विकल्प नहीं बन सकती।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज सिंह ने अपने वक्तव्य में आगाह किया कि डिजिटल माध्यमों तक अबाध पहुँच मनुष्य का असामाजीकरण कर अमानवीय बना सकती है। इसलिए हमें याद रखनी चाहिए कि यह तकनीकी मनुष्य के लिये है न कि मनुष्य इसके लिये। दुनिया के बहुत देशों में इसके प्रयोग के उचित प्रबंधन की दिशा में गम्भीर चिंतन कर यथोचित प्रतिबन्ध लगाए गये हैं।
मुख्य वक्ता के रूप में हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. अनिल राय ने स्व. विंध्याचल सिंह स्मारक न्यास के द्वारा तीनों सम्मान प्राप्त करने वाले व्यक्तिओं के चयन पर सुखद आश्चर्य करते हुए बधाई दिया। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि जहाँ आज तमाम साहित्यकार सत्तासीनों की प्रशंसा में भाट-चारण बन कर पद और अलंकरण पाने का तिकड़म कर रहे हैं और समादृत हो रहे हैं। वहीं इस तरह की लोक समर्पित संस्थाएं ऐसे साहित्य साधकों को सम्मानित कर जनपक्षधरता के प्रेरणा स्रोतों की स्थापना करती हैं। यह अपने आप में सत्ता अलंकरण के समक्ष एक समानांतर आंदोलन है। उन्होंने डिजिटल माध्यमों की सीमाओं का रेखांकन करते हुए बताया कि यह स्रोत हमारी किसी जिज्ञासा पर अंतिम परिणाम मात्र देती है और प्रक्रियागत चीजों के लिये ये पुस्तकों को ही सन्दर्भित करती हैं। पुस्तकें हमें केवल तथ्यात्मक सूचनायें नहीं देती वरन एक सूचना के साथ उससे जुड़े सम्पूर्ण तंत्र को प्रस्तुत करती हैं और इस रूप में वे हमें प्रसंग का विस्तृत बोध कराती हैं। इसलिए पुस्तकें सदैव प्रासंगिक और प्रामाणिक ज्ञान के लिये अनिवार्य थीं और रहेंगी। ऐसे में ग्रामीण पुस्तकालय पुस्तक उपलब्ध कराने के साथ ही साथ बौद्धिक विमर्श के मंच बन नये वैचारिक आंदोलनों के मार्ग प्रशस्त करेंगे।
इस सत्र के अध्यक्ष प्रो. असीम सत्यदेव ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सभी वक्ताओं के वक्तव्यओं पर टिप्पणी करते कहा कि आजकल सत्ता संस्थाओं में जो पढ़ाया जाना चाहिए उसे नहीं पढ़ाया जा रहा है, और जो नहीं पढ़ाया जाना चाहिए उसे पढ़ाया जा रहा है। ऐसे में ग्रामीण पुस्तकालयों की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है। पुस्तकालयों में जन-संघर्ष, लोक पक्षधर, लोकतान्त्रिक मूल्यों, सामाजिक न्याय और जेन्डर न्यून्ट्रल जैसे विषयों पर पुस्तकों की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए। जहाँ तक डिजिटल माध्यमों की बात है तो यह इस बात पर निर्भर करता है कि इसका उपयोग कौन किस उद्देश्य से कर रहा है। मुझे लगता है कि सूचना को यदि तेजी से फैलाना हो तो डिजिटल माध्यम जरूरी है और गंभीर चिंतन के लिये पुस्तकों से ज्यादा किसी और माध्यम पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।
इस परिचर्चा में डॉ. अचल पुलस्तेय, डॉ. चतुरानन ओझा, डॉ. हितेश सिंह, डॉ. राम नरेश, डॉ. विश्वम्भर नाथ प्रजापति, किसान नेता अरविंद सिंह, डॉ. संजय कुमार बौद्ध आदि ने ग्रामीण पुस्तकालयों की प्रासंगिकता और डिजिटल माध्यम एवं उसके साहित्य संबंध पर अपना विचार व्यक्त किया।
कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में विविध भावभूमि पर स्वलिखित कविताओं का पाठ हुआ। वरिष्ठ कवि जय प्रकाश मल्ल ने 'बिखरे-बिखरे प्रश्न?', 'कविताओं में जीवन' 'आवाहन', कवि एवं संपादक अचल पुलस्तेय ने 'एक देश है', कौशलेन्द्र मिश्र ने 'तकनीक की संगत से आई नई है रंगत....', 'भारी जिम्मा आ गईल बा अब हमरा गांव प..', कवि इंद्र कुमार यादव ने 'अरावली', 'धर्म', युवा कवि प्रवीण त्रिपाठी ने 'कैसे जुड़ेगा रिश्ता हम पहले से रिश्तेदार हैं..' कवि एवं संपादक महेश सिंह ने 'दिखा नहीं पाता कोई करामात मदारी',' मुल्क में गर साँप और बन्दर नहीं होते' डॉ. रवीन्द्र पीएस ने ''मैं चाहता हूँ कि मुझे मेरी माँ के नाम से जाना-पहचाना जाये' एवं 'बसंत के आने का मतलब मेरे राशन के कनस्तर का खाली होना है', कवि योगेंद्र पाण्डेय ने 'जन-स्वराज फिर कब होगा', स्थापित कवि अभिषेक कुमार ने 'पूर्णता को प्राप्त करने की ख्वाहिश', 'थोड़ा-सी जगह कविताओं के लिए' जैसी कविताओं का पाठ किया। इन कविताओं में व्यंग्य, प्रेम, विसंगति, स्थानीयता, पर्यावरणीय चिंता और मानवीय संवेदनाओं के भाव सघन रूप से परिलक्षित हो रहे थे। कार्यक्रम देर शाम तक चला। दोनों सत्रों का संचालन डॉ. रवीन्द्र पीएस ने किया। सम्मानित रचनाकारों, अतिथियों, कवियों और व्यवस्था में संलग्न सहयोगियों के प्रति धन्यवाद एवं आभार ज्ञापन पंकज शर्मा ने किया।
इस कार्यक्रम में ग्राम भलुआ और क्षेत्र के सैकड़ो श्रोता व साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।
प्रस्तुति : डॉ. रवीन्द्र पीएस





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